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गायन नं. ५७ ( तर्ज-चिन्तामणि पार्श्व प्रभो अर्ज करूं मैं ) श्री कुन्थुनाथ स्वामी, अर्जी पे ध्यान धरिये । कर्मों का पडदा छाया, प्रभो शीघ्र दूर करिये ॥ टेर ।। शुद्ध देव धर्म गुरुपर, श्रद्धा तनिक भी नहीं है। मिथ्यात्व को मिटाकर, समकित प्रदान करिये ॥ १ ॥ नहीं दान शील हम में, तप करना नहीं सुहाता, शुभ भावना जरा नहीं, इन दुर्गुणों को हरिये ॥ २ ॥ शुभ कार्य करने से मन, पीछे सरकता है। दौडे जहां खेल तमासे, कुमति को ऐसी हरिये ॥ ३ ॥ गुरु वाणी पर न हमको, होती रूचि जरा भी। मण्डल की है यह अरजी, धन सुमति सब में भरिये ॥ ४ ॥
गायन नं. ५८
( तर्ज-प्रभु मोरी नैया बेडा पार लगादै )
हमें नहीं प्रभु मल्लिनाथ विसारो ॥ टेर ॥ फंसा प्रभो मैं धन यौवन में, शरणा तुम्हारा हमें नाथ उबारो ॥ हमें ॥ १ ॥ भूले तुम्हें अज्ञान दशा में । पर प्रभो यह नहीं दिल में विचारो ॥२॥ डूबती नैया मेरी भवसागर में । तुम्हीं दया कर पार उतारो ॥३॥ तप जप ध्यान न है बन आता । शरणा तुम्हारा विनति अवधारो ॥ ४ ॥ मण्डल तुम्हें नित्य शीश नवाता । कर्मों को हम से धन शीघ्र निवारो ॥ ५ ॥
(४२)
सुलसा सती किं. ०-४-०
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