Book Title: Stavan Manjari
Author(s): Amrutlal Mohanlal Sanghvi
Publisher: Sambhavnath Jain Pustakalay

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Page 48
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गायन नं. ६३ जावो जावो नेमी पिया तोरी गति जानी रे। इतनी अर्जपिया मेरी नहिं मानी रे ॥ जावो ।। १ ॥ जब काहु किनो संग सहसा बन लिये रंग। सोलह सौ राणियां के बिच राधा रूकमणी रे ॥२॥ पसुपर दया कीनी भये व्रत धारी रे । आगे ही मिलुगी तुमसे सुनो केवलज्ञानी रे ॥ ३ ॥ पिचकारी जल भरी विमल कमल करी । अबिर गुलाब विच कैसी झीणो. छानी रे ।। ४ ।। अधम उधारी प्रभु वन उपकारी रे । कपुर प्रभु के पाये जैसे दूध पाणी रे ।।५।। गायन नं. ६४ ( तर्ज-लेलो लेलो लेलो कोइ गजरा ) गालो गालो गालो गुणी गुणको-गालो० ॥टेर॥ श्री जिनवर की म्हेर मीलाई । पाइ आनंदकरी छाया ।। गालो ॥१॥ लाई रंग का रेला, बनो प्रभुका चेला । ए दुनिया दिवानी, जाणी जग को फानी ॥ गालो ।। २ ॥ श्री प्रभु में दिल डाली। चित्त भावों की लाली ॥ गालो ॥ ३ ॥ ज्ञान गुणाली ध्यान गुणाली । फर्म रूठे है मुज छे के ॥ गालो ।। ४ ।। ए ताजा ध्यान जिनेश्वर का । ए शरणा लेना श्री जिनका ॥ गालो ।। ५ ।। जो सुज गई हो अन्तरकी । तो पावे आत्म कमल लब्धि ॥ ६ ॥ गायन नं. ६५ आदि जिनंद मनाया आज मेने, आदि जिनंद मनाया टेर॥ स्तवनमंजरी. (४५) For Private And Personal Use Only

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