Book Title: Stavan Manjari
Author(s): Amrutlal Mohanlal Sanghvi
Publisher: Sambhavnath Jain Pustakalay

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Page 47
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गायन नं. ६१ सिद्धारथना रे नंदन विनवू, विनतडी अवधार। भवमंडपमां रे नाटक नाचीयो, हवे मुज दान देवराव, हवे मुज पार उतार ।। सिद्धाः ॥ त्रण रतन मुज आपो तातजी, जेम नावे रे संताप । दान देयंतां रे प्रभु कोसीर कीसी ? आपो पदवी रे आप ॥ २ ॥ चरण अंगूठे रे मेरु कंपावीयो, सुरना मोड्यां रे मान । अष्ट कर्म. नारे झगडो जीतवा, दीधुं वरसी रे दान ॥३॥ शासननायक शिवसुखदायक, त्रिशला कूरखे रतन । सिद्धारथनो रे वंश दीपावीयो, प्रभुजी तमे धन्य धन्य ॥ ४ ॥ वाचकशेखर कीर्तिविजय गुरु, पामी तास पसाय । धर्मतणा ए जिन चोवीशमा, विनयविजय गुण गाय ॥ ५ ॥ __गायन नं. ६२ वहाला वीर जिनेश्वर जन्म जरा निवारजो रे । प्यारा प्रभुजी प्रीते मुज शिर परे कर स्थापजो रे ॥ १ ॥ त्रण रत्न प्रभु आपो मुजने, खोट खजाने को नहिं तुजने। अरजी उर धरी कर्म कटक संहारजो रे ॥२॥ कुमति डाकण वलगी मुजने, नमी नमी विनवू है प्रभु तुजने । ए दुःखथी दूर करवा वहेला आवजो रे ॥ ३ ॥ आ अटवीमां भूलो पडीयो, तुं साहेब साचो मने मलीयो । सेवकने शिवपुरनी सडक देखाडजो रे ॥ ४ ॥ (४४) महासती मृगावती किं. ८-३-० For Private And Personal Use Only

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