Book Title: Stavan Manjari
Author(s): Amrutlal Mohanlal Sanghvi
Publisher: Sambhavnath Jain Pustakalay

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Page 46
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org गायन नं. ५९ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( तर्ज - नाछेडो गाली दूंगीरे, भरने दे गगरी ) नमिनाथ प्रभो ! सुधी लेनाजी, तुम ही एक पालनहार । तुम हमको अपना लेनाजी, तेरा एक आधार || टेर || निरखी जब मूर्ति प्यारी, आंख हुई अति सुखियारी । क्षय हुए कर्म दल भारी, भारी सकल भयहारी रे || तुम ॥ १ ॥ यश गा सकते नहीं तेरा, टालो प्रभो ! मोह का थेरा | अब हो नहीं फिर भव फेरा, न हो शिव डेरा रे || २ || धन तुम को शीश नमावे, मण्डल शुद्ध भाव से ध्यावे । गीत गान से तुझे रिझावें, रिझावे और सुख पावे रे || ३ ॥ गायन नं. ६० ( तर्ज - मारुं वतन आ मारुं वतन ) प्रभु नमन कर प्रभु नमन । खरुं खरुं छे प्रभु नमन |र || राग द्वेषनी छाया नहीं ज्यां, एवा प्रभुथी टले भवनुं भ्रमण ॥ प्रभु ॥ १ ॥ क्रोध मान माया दूर काढो, लोभतणा प्रभु तोडो फंदन || २ || शांतिजिनेश्वर जग परमेश्वर, भजन तमारुं ताप हरे चंदन || ३ || षट् खंड त्यागी संजम धार्यु, अद्भुत त्यागी तने करूं वंदन || ४ || आत्मकमलमां लब्धि स्थापो, तुंही शरण प्रभु तुंही शरण || ५ || स्तवनमंजरी. For Private And Personal Use Only ( ४३ )

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