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गायन नं. ४७
( तर्ज-पनजी मुंढे बोल ) बोल बोल आदीश्वर वाला, कांई थारी मरजी रे, मांसु मुंढे बोल ।। टेर ।। माता मरुदेवी वाट जोवता, इतने बधाई आई रे । आज ऋषभजी ऊतर्या बाग में, सुण हरखाई रे ॥ मांसु० ॥१॥ नाय धोयने गज असवारी, करी मरुदेवी माता रे । जाय बाग में नन्दन निरखी, पाई शाता रे॥ मांसु० ॥२॥ राज छोडने निकल्यो रिखवो, आ लीला अदभूति रे। चमर छत्र ने और सिंहासन, मोहनी मुरती रे ॥ मांसु०॥३॥ दिन भर बैठी वाट जोवती, कद मारो रिखको आवे रे । कहती भरत ने आदिनाथरी, खबरां लावे रे ॥ मांसु० ॥ ४ ॥ किसी देश में गयो वालेसर, तुझ बिन वनिता सुनी रे । बात कहो दिल खोल लालजी, क्यों बन्या मुनि रे ? ॥ मांसु० ॥ ५ ॥ रह्या मजामां है सुखशाता, खूब किया दिल चाया रे । अब तो बोल आदीश्वर माँसु, कल्पे काया रे ।। मांसु० ॥६॥ खैर हुई सो हो गई वाला, बात भली नहीं कीनी रे । गया पीछे कागद नहीं दिनो, मारी खबर न लीनी रे ॥ मांसु० ।। ७ ।। ओलंभा मैं देऊं कठा लग ? पाछो क्यों नहीं बोले रे ? । दुःख जननी को देख आदीश्वर, हीवडे तोले रे॥ मांसु० ॥८॥ अनित्य भावना भाई माता, निज आतमने तारी रे । केवल पामी मुक्ति सिधाया, ज्याने वंदना हमारी रे ॥ मांसु० ॥ ९ ॥ मुक्ति का दरवाजा खोल्या, मोरादेवी माता रे । काल असंख्या
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श्रीसंभवनाथचरित्र किं. ०-१२-०
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