Book Title: Stavan Manjari
Author(s): Amrutlal Mohanlal Sanghvi
Publisher: Sambhavnath Jain Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 35
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गायन नं. ३९ ( तर्ज-क्या जादु भर लाइरे हो मोरा नंना देवरीया ) भवी ध्यावो रे, हारे भवि ध्यावो रे, हां प्रभु शीतल जिनन्द को ॥ टेर ॥ चन्द्र समान शीतल प्रभु सोहे, नहीं प्रभु को विसराओ रे ॥ १॥ तज कर मोह दीक्षा ली धारी, क्यों न शरण प्रभु धारो रे ॥ २ ॥ शरणागत को प्रभु अपनाते नहीं, इन प्रभु को भुलाऔ रे ॥ ३ ॥ छोडो तुम झंझट दुनिया का, नित्य प्रति ध्यान लगाओ रे ॥ ४ ॥ ओसिया मंडल धन नित्य समरे, मिल प्रभु सनमुख आओ रे ॥ ५॥ गायन नं. ४० यात्रा नवाणु करीए विमलगिरि, यात्रा नवाणु करीए ।।टेर॥ पूर्व नवाणु वार शत्रुजय गिरि ऋषभ जिनंद समोसरीए || विमल ॥१॥ कोडी सहस भव पातक त्रुटे, शेत्रुजा सामो डग भरीए ।। २ ।। सात छठ्ठ दोय अठ्ठम तपस्या, करी चडीए गिरि वरिए ॥ ३ ॥ पुंडरिक पद जपीए मन हरखे, अध्यवसाय शुभ धरीए ॥ ४ ॥ पापी अभव्य न नजरे देखे, हिंसक पण उद्धरीए ॥ ५॥ भूमि संथारो ने नारी तणो संग, दूर थकी परिहरीए ॥ ६॥ सचित्त परिहारी ने एकल आहारी, गुरु साथे पद चरीए ॥ ७ ॥ पडिक्कमणा दोय विधिशुं करिए, पाप पडल परिहरिये ॥ ८ ॥ कलिकाले ए तीरथ मोटुं, प्रवहण जेम भर दरिये ॥ ९ ॥ उत्तम ए गिरिवर सेवंता, पद्म कहे भव तरीए ॥ १० ॥ hrrina ( ३२ ) स्तवनमंजरी. For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74