Book Title: Stavan Manjari
Author(s): Amrutlal Mohanlal Sanghvi
Publisher: Sambhavnath Jain Pustakalay
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गायन नं. ४१ सिद्धाचल गिरि भेट्या रे, धन्य भाग्य हमारां ॥ टेर । ए गिरिवरनो महिमा महोटो, कहेतां न आवे पारा, रायण रुषभ समोसर्या स्वामी, पूर्व नवाणुं वारा रे ॥ धन्य ।। १॥ मूलनायक श्री आदि जिनेश्वर, चौमुख प्रतिमा चारा । अष्ट द्रव्य शुं पूजो भावे, समकित मूल आधारा रे ॥ २ ।। भाव भक्ति शुं प्रभु गुण गावे, अपना जन्म सुधारा । यात्रा करी भविजन शुभ भावे, नरक तिर्यंच गति वारा रे ॥ ३ ॥ दूर देशांतरथी हुं आव्यो, श्रवणे सुणी गुण तोरा । पतितउद्धारन बिरुद तुमारो, ए तीरथ जग सारा रे ॥४॥ संवत अढार त्याशी मास अषाढ, वदि आठम भोमवारा। प्रभु के चरण प्रताप से संघ में, क्षमारत्न प्रभु प्यारा रे ॥ ५ ॥
गायन नं. ४२
वासुपूज्य विलासी, चंपाना वासी, पुरो अमारी आश । करूं पूजा हुं खासी, केसर घासी, पुष्प सुवासी, पूरो अमारी आश ।। ॥टेर ॥ चैत्यवंदन करुं चित्तथी प्रभुजी, गाऊं गीत रसाल । एम पूजा करी विनति करुं छु, आपो मोक्ष विशाल, दीयो कर्मने फांसी, काढो कुवासी, जेम जाय नासी, पूरो अमारी आश ॥ वा० ॥१॥ आ संसार घोर महोदधिथी, काढो अमने बाहर । स्वारथनां सहुं कोइ सगां छे, मात पिता परिवार, बालमित्र उल्लासी, विजय विलासी, अरजी खासी, पूरो अमारी आश ॥ वा० २॥
स्तवनमंजरी.
( ३३ )
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