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होने को रंगला, कर्मों को मंगला, शुद्ध धर्मो के द्वारा, शिव मंदिर प्यारा ॥ एक. ॥ १ ॥ इतना ऊंचा रंगला होवे, मानु आतम प्यारा, ध्यान को घर के ज्ञान वाहन पर, फुलेफाले चित्त हमारा ॥२॥ मंडाण हो गुणों का आतम में प्यारा ध्यानदिल को भर के जीन को, लब्धि में सुखपाई ॥ ३ ॥
गायन नं. ३७
( तर्ज - तेरी छलबल है न्यारी )
करो दरसन जिनन्द, होवे आतम आनन्द, कटे जगत के फन्द मानो चतुरसुजान ॥ धरो मन प्यार प्रभु लगन लगावो । दरसन से शिवसुख पावो मेरी जान । प्रभु दरसन महान, वल्लभ आतम सुजान, करे अपने समान होवे वाह वाह वाह वाह वाह वाह, वाह वाह वाह ||
गायन नं. ३८
( तर्ज - केशराया धांसु प्रीत करी रे )
संभव जिन स्वामी चरणों में हम को रख लीजिये || टेर || कर्मराज के फंद पडे हैं, इससे नाथ बचाना । तुम बिन आश्रय और न हमको, जीसको जाय सुनानाजी | संभव || १ || सम्भवनाथ तुम्हारा स्वामी सार्थक यह कर लीजे । असम्भव को सम्भव करके, मुक्ति का वर दीजे जी ॥ २ ॥ छात्र सकल और धन मिलकर के, गुण गावे हम आज | सुनकर अर्ज हमारी अब तो, सारौ वांछित काजजी ॥ ३ ॥
रत्नाकरपचीसी किं. ८-१-०
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