Book Title: Stavan Manjari
Author(s): Amrutlal Mohanlal Sanghvi
Publisher: Sambhavnath Jain Pustakalay

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Page 33
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री अश्वसेन भोमाजी के नन्दन, कीर्ति त्रिभुवन छाई । समेतशिखरगिरि-मंडन प्रभु को देख दरस हरखाई, हृदय मेरो अति हुलसाई, || सांवरो || १ || आज हमारे सुरतरु प्रगट्यो, आज आनन्द बधाई । त्रण भुवन को नायक निरख्यो, प्रगट्यो पूर्व पुन्याइ, सफल मेरो जन्म कहाई ॥ २ ॥ प्रभुजी को दरस सरस बिन भटक्यो, भवभव भटक्यो में भाइ । अब तोरा दरस सरस नित चाहत, बालक है गुण गाई, प्रभुजी से लगन लगाई ॥ ३ ॥ ( ३० ) गायन नं. ३५ ( तर्ज - केरवो ) भैं सुसंगी सुसंगी सुसंगी प्रभु मिल गये, सुसंगी प्रभु मिल गये 1 सफल भये मेरे नेन नेना सुसंगी प्रभु मिल गये || ढेर || हांरे एक तो दरसन मैं दरसन भैं दरसन को प्यासा । मै दर्शन को प्यासा हां रे दरसन बिना नहिं चैन ॥ नैना ॥ १ ॥ हारे एक तो मैं पापी मैं पापी हूं प्राणी, मैं पापी हूं प्राणी तारनावाले दीनानाथ ॥ २ ॥ हरेि एक तो मैं माया मैं माया मैं माया को लोभी मैं माया को लोभी हां रे झुठी माया मेरी जान मैं आया मैं आया मैं आया मैं आया तेरे शरणे हारे जैन मंडली गुण गाय ॥ ४ ॥ गायन नं. ३६ ( तर्ज - एक बंगला बने न्यारा ) -- एक ध्यान प्रभु तारा, बने मनवा जीससे सारा ॥ टेर ॥ स्तवनमंजरी. || ३ || हारे एक तो शरणे, मैं आया तेरे For Private And Personal Use Only

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