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बनारसी जन्म लियो हैं, अश्वसेनजी के घरबार । पारस ॥ १ ।। मस्तक मुकुट काना दो कुंडल, भुजबंध सोहे झलकेदार ।। २ ॥ हीवडे हार मोतियन को सोहे, पुणची सोहे रत्न जडाव ॥ ३ ॥ अन्य देव मैं बोत सेविया, अब मेरे तेरो आधार ॥ ४ ॥ राग द्वेष दोय चोर लुटेरा, यह दोनु पडीया मेरी लार ॥ ५ ।। दास कान चरणांको चाकर, भवसागर से पार उतार ॥ ६ ॥
गायन नं. २५
( राग-धुंसारी ) दरसन कियो आज सिखरगिरि को, दरसन कियो । टेर ।। देखो माधोबन सितानालो । जहां को नीर बहै निको । दरसन ॥ १ ॥ बीस कोस से गिरवर दीसे । तो भागीयो भरभ सकल जन को ॥ २ ॥ बीस टुंक पर बीस गुमटीया । तिण मांहे चरण जिनेश्वर को ॥ ३ ॥ अब जिनेश्वर के सरण में आयो। रस्तो पायो सिवपुरको ॥ ४॥
गायन नं. २६
( तर्ज-प्रेमकी बसी बाजे ) जगत में वीर की वाणी गाजे ॥ टेर ।। वाणी को गाना, दुःखको मीटाना । वाणी प्रभु सुखदाना ।। जगत ॥ १ ॥ वाणी ही मुक्ति, वाणी वीरकती। वाणीसे शिव पाना ॥ २ ॥ वाणी ही धन है, वाणी रटन है । भव अटन को मीटाना ॥ ३ ॥ वाणी
.....wwwwrimariwww.www.www.wwwwwwwwwwwwwwwwwwwww • नवीनमहावीर गायनमाला किं. ०-०-६ (२५)
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