Book Title: Stavan Manjari
Author(s): Amrutlal Mohanlal Sanghvi
Publisher: Sambhavnath Jain Pustakalay

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Page 26
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनका पल पल ध्यान धरिने, निज करम को कटावो ॥ ज्ञान ।। तुम बन जावो आतम राजा, सुमति बनुं मैं रानी । एकमेक हो चेतन हम तुम, शिवपुर मार्ग सोहावो ॥ ज्ञान ॥ केवलज्ञानका भाव जगाकर, भव वन को ही दहावो । आत्मकमल को खूब खीला कर, लब्धिसूरि सुख पावो ॥ ज्ञान ।। गायन नं. २१ ( राग तम सारी ) धन्य भाग हमारा दरसन कीनो रे गोडीपास का ॥ टेर ॥ बहुत दिनों से थी अभिलाषा, कद भेटुं प्रभु पास । पुन्य अंकुरो उगीयोसरे, आज फली मुझ आस हो । धन्य० ॥ १ ॥ शान्त मुद्रा मोहनगारी, नीलवरण तन सोहें। नयन निरखता आनंद आवे, सुरनर का मन मोहे ॥ धन्य० ॥ २ ॥ ज्ञानादिक गुण सम्पदासरे तुज अनन्त अपार । एक अंस तिण मांहलो सरे, मुझे दीजै करतारजी ॥ धन्य० ॥३॥ परंपरा प्रभु आपके सरे, जिणरे छढे पाठ । पर उपकारी श्रीरत्न-प्रभु सूरि नाम लिया होय थाटजी ॥धन्य० ॥४॥ नगर फलोधी भेटी यास रे, प्रथम गोड़ी पास । गयवरचंद सरणो लियो सरे, पूरो वांछित आशजी ।। धन्य० ॥ ५ ॥ गायन नं. २२ ( तर्ज-काली कमलीवाले तुमको, लाखों प्रणाम ) आवो वीर प्यारे नैया डूब रही है ॥ टेर ॥ गहरी गहरी पद्यमयमहावीर जीवन किं. ०-०-९ For Private And Personal Use Only

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