Book Title: Stavan Manjari
Author(s): Amrutlal Mohanlal Sanghvi
Publisher: Sambhavnath Jain Pustakalay

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Page 27
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नदियां नाव पुरानी । बड़े बड़े भँवरहैं गहरा पानी । हो गई भारी हानि नैया डूब रही है । आवो ॥ १ ॥ जैसे चन्दनबाला तारी । गोतम को दी शिक्षा प्यारी । तारो नाव हमारी नैया डूब रही है ॥ २ ॥ छोटे छोटे बालक शरण में आये । चरण में आप के शीश झुकाये । गुण गायें हर्षाएँ नैया डूब रही है ॥ ३ ॥ मदन, गुमान हैं तेरे प्यारे । चन्दन मुन्नी तेरे दूलारे । राम जाय बलिहारी नैया डूब रही है ॥ ४ ॥ गायन नं. २३ ( तर्ज-या इलाही मिट न जाये दर्दे दिल ) . वीर भगवन ! शीघ्र सुध ले जाइये । धर्म उपवन को पुनः विकसाइए ॥ १ ॥ विश्व सोया है तिमिर अज्ञान में । ज्ञान का आलोक अब प्रसराईए ॥ २ ॥ द्वेष की ज्वाला में सब ही भस्म हैं । प्रेम अमृत वीर ! अब छिड़काइए ॥ ३ ॥ साम्यवादी राष्ट्रवादी हों सभी । विश्व को यह अमर मन्त्र सुनाइए ॥४॥ शुष्क हैं सब पुष्प उपवन विश्व के । कर कृपा इन में अमरता लाइए ॥ ५॥ दीनबन्धो ! करुणा क्रन्दन दीनके । वीर जिनवर ! कर कृपा सुनजाइए ॥ ६ ॥ आश केवल आप की भगवन ! लगी। नाथ निज करुणा प्रवाह बहाइए ।। ७ ।। गायन नं. २४ ( राग गाली ) - पारस भजले बारंबार, जैनधर्म से पायो सार ॥ टेर ॥ नगर (२४) स्तवनमंजरी. For Private And Personal Use Only

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