Book Title: Stavan Manjari
Author(s): Amrutlal Mohanlal Sanghvi
Publisher: Sambhavnath Jain Pustakalay

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Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशा हमारी । अर्जी धन की सुनकर अब तो, भवभ्रमण देारी ॥ ४ ॥ गायन नं. १३ ( राम पद ) जिनराज नाम तेरा, राखु हमारे घट में || टेर ॥ जाके प्रभाव मेरा, अज्ञान का अंधेरा, भागा भया उजेरा ॥ १ ॥ सुरती है तेरी रागे, देख्याँ विभाव जागे, अध्यात्मरूप जागे || २ || मुद्रा प्रमोदकारी, रूपभेस ज्युं तिहारी, लागत मोहे प्यारी || ३ || त्रैलोक्यनाथ तुमही, हम हे अनाथ गुनही, करीए सनाथ हमही ॥ ४ ॥ प्रभुजी तिहारी साखे, जिन हर्ष सूरि भाषे, दिल मोही - याहीं राखे || ५ || गायन नं. १४ ( पूजारी मोरे मंदिर में आओ ) प्रभुजी मन मंदिर में आयो । ज्ञानन की सुरीता सरीतामें, आ कर दिलको बहावो || प्रभुजी | तेरे आगे में करूं आरती, भव दुःखको दहलावो । कर्म को वारो भविजन के तुम, शिवके सुख दिलावो || प्रभुजी || दिल हम उठ रह्यो क्यों प्रभुजी, ए बाता न समजावों | ज्युं मन गम ए आवे जिनजी, ए मुज मार्ग बतावो ॥ प्रभुजी ॥ श्री चंद्रानन चंद्र ज्युं शीतल, शीतलता उपजावो । आत्म कमल में दर्शन प्याली, लब्धि सूरि को पीलावो || प्रभुजी || ( २० ) स्तवनमंजरी. For Private And Personal Use Only

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