Book Title: Stavan Manjari
Author(s): Amrutlal Mohanlal Sanghvi
Publisher: Sambhavnath Jain Pustakalay

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Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्यों न जिनेश्वर साम्य जगाते ? दारुण दृश्य, नशादो महावीर, नशादो, नशादो, नशादो महावीर ॥२॥ जैन विभाजित होते जाते, निज अस्तित्व नशाते जाते । जैनों में, प्रेम बढ़ा दो महावीर, बढादो, बढादो, बढादो महावीर ।। ३ ॥ जिन मत शान बचाओ जिनवर, धर्म ही जग में सब से बढ़कर । नूतन ज्योति जगादो महावीर, जगादो, जगादो, जगादो महावीर ॥ ४ ॥ गायन नं. ९ ( छोटी मोटी सैया रे जालीका मोरे गुंथना ) पार्श्व प्रमुजी रे, बिनति मोरी मानना ॥ टेर ॥ अति दुःख पाया मैने, मोह के राज में ( २ ) लाख चौराशी रे, योनिमें जहाँ घूमना । पार्थ ॥१॥ फंस रहा हूं मैं तो, कर्मों के घेर में (२) चार गतिकेरे, दुःखों को बड़े जीलना ॥२॥ भटक रहा हूं प्रभु, अंधेरी रेन में (२) । ज्योति जगादो रे, टले ज्युं मेरा रुलना ॥३॥ सम्यग्दर्शन ज्ञान के राज में, चरण मीलादो रे, स्वामीजी नहीं भूलना ॥ ४॥ गायन नं. १० ( श्याम कल्याण ) आयेरी हम दरसन दरवाजा तेरा खोलो ॥ टेर ॥ ध्यान धरूंगा तेरी पूजा करूंगा, आंगी बनाऊं रंगरोल ॥ आये ॥ १ ॥ थे मेरा ठाकुर प्रभुजी में तेरा चाकर, एक बार हंस बोल ॥२॥ (१८) सवनमंजरी. For Private And Personal Use Only

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