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द्वेष न जीन में, तुम बिना देव न और सुहावे । तेरे दर्शन नयन करत जब, हर्ष भयो अति तन में ॥ प्रभुजी० ॥ १ ॥ विरतियां जाकी जग भारी, सब जीवन की रक्षणकारी । इस लिये शिवपुर बसावे, तुं ही वसा नयन में ॥ प्रभुजी० ॥ २ ॥ आत्मकमल में हुई खूमारी, मति इस से सुधरे हमारी । वीरमगाम सूरि लब्धि गावे, तुं ही बसा नयन में ॥ प्रभुजी० ॥ ३ ॥
गायन नं. ७
( भैरवी ) अब तो प्रभुजी का लेलो सरन | टेर ॥ आरज देश उत्तम कुल जाति, मानव भव अब पायो रतन ॥ अब० ॥ १ ॥ द्रव्यभाव से पूजा प्रभु की, महानिशीथे जिनवर बचन ॥२॥ गृही को पूजा दोनों ही सुंदर, भावपूजा से साधु लगन ॥३॥ अष्ट द्रव्य से द्रव्य पूजा है, भावपूजा करो प्रभु नमन ॥ ४ ॥ जिनप्रतिमा जिन सारखी मानो, आतम वल्लभ तारनतरन ॥ ५॥
गायन नं. ८
( सुनादे, सुनादे, सुनादे, कृष्णा ) पधारो, पधारो, पधारो, महावीर, अहिंसा का मन्त्र सुनाने महावीर ॥ टेर ॥ निखिल जगतमें जिन जो सुनाया, वीर वही मन में है भाया । दूनिया को फिर से सुना दो महावीर, सुनादो, महामन्त्र, फिर से महावीर ।। पधारो॥१॥ भीषण दृश्य न देखे जाते।
जैननित्यस्मरणमाला किं. ०-१-०
(. १७ )
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