Book Title: Stavan Manjari
Author(s): Amrutlal Mohanlal Sanghvi
Publisher: Sambhavnath Jain Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गायन नं. २ ( राग-दयामण दीजे यह वरदान । प्रभो ! हम सब होवे गुणवान् ॥ टेर ॥ चिन्ताचूरण वांछितपूरण, सुखकर्ता भगवान् । है रक्षक और स्वामी सब के, रक्खो हमारा मान । प्र० ॥ १ ॥ सद्गुणशील बने हम भारी, करें गुरुजन का मान । त्यागें झूठ अप्रिय वाचा को, करें अतिथि सन्मान ॥ २ ॥ द्वेष क्रोध ईर्षा को त्यागें, प्रेम सुधा करें पान । छात्र सकल और धन मिल संगे, करें तेरा गुणगान ॥ ३ ॥ गायन नं. ३ ( कव्वाली ) तुम्हारी मोहनी मूरत मेरे दिल में समाई है । टेर ।। न दिन को चैन पहलू में, न सब को नींद आती है । न जाने आपने दर्शन की, मय कैसी पिलाई है ॥ तु० ॥ १ ॥ दिया मैं त्याग जग फानी, फकीरी वेष धारा है। नजर जादूभरी जब सें, हमें तुमने दिखाई है ॥ २ ॥ विचरतां हूँ कभी तन में, कभी वस्ती कभी वन में। जहां सारा रही भटका, मुझे तेरी जुदाई है ॥३॥ नहीं ताकत मेरे पैरों में, अब दर दर भटकने की । तिलक को नाम वस हरदम, एक तेरा सहाई है॥ ४ ॥ गायन नं. ४ ( राग-तुंहीने मुझ को प्रेम शिखाया ) वीर जिणंद मुजे दिल में भाया, काल अनादि का मोह स्तवनमंजरी (१५) For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74