Book Title: Stavan Manjari
Author(s): Amrutlal Mohanlal Sanghvi
Publisher: Sambhavnath Jain Pustakalay

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Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भिगाया ॥ टेर ॥ समकित मेरे दिल में बसाया, आतम ध्याया ज्योति जगाया, तूम ही हो वीतराग वालम, तुम ही हो वीतराग ॥ वीर० ॥ १ ॥ काल अनादि से भव में फसाया, सुख नहीं पाया दुःख में हटाया, तुम ही हो वीतराग वालम, तुम ही हो वीतराग | वीर० ॥ २ ॥ प्रभु चरणों में शिर को जुकाया, दुःख हटाया मोह मीटाया, तुम ही हो वीतराग वालम, तूम ही हो बीतराग ॥ वीर० ॥ ३ ॥ अब जिनवर मेरे दिल में ठाया, गुणगण गाया भव से तराया, तुम ही हो वीतराग वालम, तूम ही हो वीतराग ।। वीर० ॥ ४ ॥ भूला न जावे गुण को भूलाया, ज्ञान जगाया आनंद पाया, लब्धिसूरि सुखकार वालम लब्धिसूरि सुखकार ॥ वीर० ॥ ५ ॥ गायन नं. ५ ( बसंत ) होई आनन्द बहार रे प्रभु बैठे मगन में ॥ टेर ॥ अष्टादश दूषण नहीं जिन में, प्रभु गुण धारे बार रे ।। प्रभु० ॥ १॥ चौतिस अतिशय पैंतीस बानी, जगजीवन हितकार रे ॥२॥ शांतरूप मुद्रा प्रभु प्यारी, देखो सब नर नार रे ।। ३॥ आनंद थावो प्रभु गुण गावो, मुख बोलो जयकार रे ॥ ४ ॥ प्रभु भक्ति से वल्लभ होवे, आनंद हर्ष अपार रे ॥५॥ गायन नं. ६ ( राग-बालम आय बसो मोरे मन में ) प्रभुजी आये बसो मोरे मन में ॥ टेर ।। राग न जीन में rrrrwwwwwwwwww (१६) घर का डाक्टर किं. ०-२-० For Private And Personal Use Only

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