Book Title: Stavan Manjari Author(s): Amrutlal Mohanlal Sanghvi Publisher: Sambhavnath Jain Pustakalay View full book textPage 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीर महाराजको, भेटे भविचित्त लाय । शासन के शिरताज है, संबकी करसी सहाय ॥२४॥ हाथ जोड बिनति करुं, सुणिये दीनानाथ !। इन्द्र शरण हैं आपके, राखे चरणको दास ॥२५॥ ॥ दूध की प्रक्षाल करते वखत बोले । मेरुशिखर नवरावे हो सुरपति, मेरुशिखर नवरावे । जन्मकाल जिनवरजीको जाणी, पंच रूप करी आवे हो सुरपति, मेरुशिखर नवरावे ॥ || जल की प्रक्षाल करते वखत बोले ।। ज्ञान कलश भरी आतमा, समता रस भरपूर । श्री जिनने नवरावतां, करम थयां चकचूर ।। ॥धूप की पूजा करते वखते बोले ॥ धूपनी पूजा करीए रे, ओ मनमान्या मोहनजी । प्रभु धूप घटा अनुसरीए रे, ओ मनमान्या मोहनजी ।। प्रभु नहीं कोई तमारी तोले रे, ओ मन मान्या मोहनजी । अंते छे शरण तमारं रे, ओ मनमान्या मोहनजी ।। ॥ पुष्पपूजा करते बखत बोले । प्रभु कंठे ठवी फूलनी माला, फूलथकी व्रत उच्चरीए, चित्त चोखे, चोरी नव करीए । स्वामीअदत्त कदापि न लीजे, भेद अढार परिहरिये । चित्त० ॥ श्रीसंभवनाथचरित्र किं. ०-१२-० For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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