Book Title: Stavan Manjari
Author(s): Amrutlal Mohanlal Sanghvi
Publisher: Sambhavnath Jain Pustakalay

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चैत्यवंदन करने की विधि ईच्छामि खमासमणो ! वंदिऊं जावणीज्जाए निसिहीआए मध्यएण वंदामि (ऐसे तीन वार खमासमणो हाथ जोड़ के खड़ा हो फिर गोडालिएं बेठके करे । फिर डाबा गोड़ा ऊंचा करके नीचेका पाठ कहे ―) ईच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! चैत्यवंदन करूंजी, इच्छं, चैत्यवंदन आज देव अरिहंत नमुं, सुमरू ताहरो नाम । ज्यां ज्यां प्रतिमा जिनतणी, तिहां तिहां करूं प्रणाम ॥ १ ॥ शत्रुंजय श्री आदिदेव, नेम नमुं गिरिनार । तारंगे श्री अजितनाथ, आबु रिखब जुहार ॥ २ ॥ अष्टापद गिरि ऊपरे, जिन चौविसे जोय । मणिमय मुरती मानसु, भरत भरावी सोय || ३ || समेतशिखर तीर्थ बडो, ज्यां वीसे जिनराज । वैभारगिरि ऊपरे, वीर जिनेश्वरराय || ४ || मांडवगढनो राजियो, नामे देव सुपास । रीषभ कहै जिन समरतां, पूरे मननी आस || ॥ जं किंचि ॥ जं किंचि नामतिथ्यं, सग्गे पायालि माणुसे लोए । जाई जिणबिंबाई, ताई सबाई वंदामि ॥ || नमुथ्थुणं ॥ नमुथ्थु णं अरिहंताणं, भगवंताणं ॥ १ ॥ आइगराणं, तिथ्थ - यराणं, सयंसंबुद्धाणं ॥ २ ॥ पुरिसुत्तमाणं, पुरिससीहाणं, पुरि ( १० ) सुलसा सती किं. ०-४-० For Private And Personal Use Only

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