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४ : श्रमण, वर्ष ६२, अंक ३ / जुलाई-सितम्बर - २०११ आदि से रहित पुरुष-विशेष कहा गया है। आत्मा के लिए पुरुष शब्द का प्रयोग हुआ है जो कूटस्थ नित्य, त्रिगुणातीत (सत्व, रजस् और तमस् से रहित), अविकारी, निर्लिप्त, निर्गण, अकर्ता, अप्रसवधर्मी और साक्षी है। पुरुषों की संख्या अनेक है। ज्ञान (बुद्धि) जड़ प्रकृति का परिणाम है जिसे महत् तत्त्व कहा गया है। इसका सम्बन्ध जब आत्मा से होता है तो वह पुरुष ज्ञानरूप हो जाता है किन्तु मुक्तावस्था में प्रकृति से सम्बन्ध-विच्छेद हो जाने के कारण वह ज्ञान, सुखादि से रहित हो जाता है। संसारावस्था में आत्मा के साथ जब बुद्धि का सम्पर्क होता है तब वह सुखादि का अनुभव करता है। प्रकृति केवल की है और पुरुष केवल भोक्ता है। पुरुष और प्रकृति का भेदकज्ञान (विवेक ज्ञान) होने पर जीवात्मा की मुक्ति होती है। 'वस्तुत: बन्धन और मोक्ष प्रकृति का होता है' ऐसा सांख्यकारिका में कहा गया है। क्रियाशीलता प्रकृति का धर्म है, आत्मा का नहीं। वह तो अविकारी है, निष्क्रिय है, अकर्ता है, सर्वव्यापक है, सर्वधर्मी है, चैतन्यरूप है परन्तु ज्ञान उसका स्वभाव नहीं है, इसीलिए मुक्तावस्था में ज्ञान नहीं रहता है। सात्विक बुद्धि के चार गुण हैं- धर्म, ज्ञान, वैराग्य और ऐश्वर्य। तामस बुद्धि के भी चार गुण हैं- अधर्म, अज्ञान, अवैराग्य और अनैश्वर्य। सात्विक बुद्धि से (महत्) अहंकार, मन, और इन्द्रियाँ उत्पन्न होती हैं और तामस से तन्मात्राएँ
और महाभूत पैदा होते हैं प्रकृति का विकार होने से स्वभावतः बुद्धि अचेतन है। बुद्धि में जब चैतन्यात्मक पुरुष प्रतिबिम्बित होता है और प्रतिबिम्बित पुरुष का पदार्थों के साथ सम्पर्क होता है तो उसे ही ज्ञान कहते हैं। बुद्धि में चैतन्य पुरुष का प्रतिबिम्ब होने पर परस्पर उपकार होता है और प्रतिबिम्बित पुरुष ज्ञाता और भोक्ता कहलाता है। पुरुष प्रकृति का अधिष्ठाता है और प्रकृति के कार्य पुरुष के लिए होते हैं। पुरुष अनेक हैं। इस तरह इन दोनों दर्शनों में मुक्तावस्था में ज्ञान, सुख आदि का अभाव है क्योंकि ये प्रकृति के साथ सम्बन्ध होने पर होते हैं। प्रकृतिलीन पुरुष भी मुक्त कहलाते हैं परन्तु वे भविष्य में पुन: बन्धन में आ सकते हैं। सदा मुक्त ईश्वर अन्य मुक्तों से भिन्न है। संसारी पुरुष ॐ का ध्यान करने से ईश्वर की कृपा का पात्र होता है तथा उसे स्व-स्वरूप का साक्षात्कार भी हो जाता है। ईश्वर सृष्टिकर्ता नहीं है। योगदर्शन में चिकित्साशास्त्र की तरह (रोग, रोग हेतु, आरोग्य और औषध) चार व्यूह हैं- दु:खमय संसार, संसार का हेतु प्रकृति-संयोग, मोक्ष (प्रकृति-संयोग की आत्यन्तिक निवृत्ति) और निवृत्ति का उपाय (सम्यग् दर्शन, अष्टाङ्ग योग आदि)। बौद्ध दर्शन में भी इस प्रकार के चार आर्य सत्य बतलाए हैं- दु:ख, दु:ख के कारण, दु:ख से निवृत्ति और दुःख-निरोधोपाय। चित्त (अन्त:करण = बुद्धि, मन