Book Title: Sramana 2011 07
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 106
________________ पार्श्वनाथ विद्यापीठ समाचार १. ISJS के अध्येताओं का जैनविद्या-प्रशिक्षण कार्यक्रम सम्पन्न पार्श्वनाथ विद्यापीठ परिसर में ४ जून २०११ से ८ जुलाई २०११ तक आई०एस०जे०एस० (इण्टरनेशनल स्कूल फॉर जैन स्टडीज) के तत्त्वावधान में जैनविद्या के विभिन्न विषयों पर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित हुए। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में कुल २९ विदेशी विद्वानों ने जैनधर्म-दर्शन का अध्ययन किया। इसमें जैनधर्म-दर्शन के विभिन्न विषयों पर प्रो० पारसमल अग्रवाल (अमेरिका) ने द्रव्य व तत्त्व-विचार एवं कर्मसिद्धान्त, प्रो० मारुति नन्दन तिवारी (वाराणसी) ने जैन प्रतिमा-विज्ञान तथा जैन कला, प्रो० सुदर्शन लाल जैन (वाराणसी) ने जैन धार्मिक अनुष्ठान, पर्व, पूजा, मंत्र, तीर्थस्थान, जैन दार्शनिक साहित्य एवं रत्नकरण्डश्रावकाचार, डॉ० प्रियदर्शना जैन (चेनई) ने उत्तराध्ययनसूत्र एवं दशवैकालिकसूत्र, डॉ. अशोक कुमार सिंह (वाराणासी) ने जैनधर्म में सहिष्णुता और प्रो० विनय जैन (दिल्ली) ने लेश्या सिद्धान्त पर व्याख्यान प्रस्तुत किया। दिनाङ्क ८ जुलाई २०११ को इस कार्यक्रम का समापन समारोह आयोजित किया गया। समारोह के मुख्य अतिथि थे प्रो० बी० डी० सिंह, रेक्टर, का० हि० वि० वि०, वाराणसी, अध्यक्ष थे डॉ० ओम प्रकाश केजरीवाल, पूर्व मुख्य सूचना निदेशक, भारत सरकार तथा समारोह के सारस्वत अतिथि थे प्रो० कमलशील, सङ्काय प्रमुख, कला संकाय, का० हि० वि० वि०, वाराणसी। कार्यक्रम का प्रारम्भ प० पू० मुनि प्रशमरति विजय जी के द्वारा किए गए मंगलाचरण से हुआ। प्रो० सुदर्शनलाल जैन, निदेशक, ने विद्यापीठ का परिचय देते हुए सभी आगन्तुकों का स्वागत किया। आई. एस. जे. एस. के निदेशक डॉ० शुगन चन्द जैन ने कार्यक्रम की सफलता पर सन्तोष व्यक्त किया तथा आई. एस. जे. एस. द्वारा भविष्य में आयोजित किए जाने वाले विभिन्न कार्यक्रमों के विषय में अपने विचार व्यक्त किए। अध्यक्ष पद से बोलते हुए डॉ० ओ० पी० केजरीवाल ने जैनधर्म की प्राचीन हस्तप्रतों एवं महत्त्वपूर्ण अभिलेखों को सन्दर्भित किया तथा पार्श्वनाथ विद्यापीठ द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में किये जा रहे कार्यों की सराहना की। उन्होंने जैनधर्म के सिद्धान्तों को २१वीं शती के लिए अत्यन्त उपादेय बताया। मुख्य अतिथि पद से बोलते हुए प्रो० बी० डी० सिंह ने कहा कि आज विदेशों में जैन धर्म काफी लोकप्रिय हो रहा है तथा उसके सिद्धान्त पश्चिम में काफी तेजी से अपनाये जा रहे

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