Book Title: Sramana 2011 07
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 31
________________ २० : श्रमण, वर्ष ६२, अंक ३ / जुलाई-सितम्बर - २०११ अर्थ में ही प्रयुक्त है। • गउडवहो.१ में फलरहित धान्य के लिए बुस शब्द का प्रयोग मिलता है। देशीनाममाला८२ में जौ आदि के कडंगर, भूसा अर्थ में बुसिया का प्रयोग हुआ है। हल्ला हिन्दी में हल्ला शब्द शोरगुल, ललकार, धावा, हमला, अनेक आदमियों की बात-चीत अर्थ वाचक है।८३ यह शब्द सर्वप्रथम भगवतीसूत्र में प्राप्त होता है।८४ झोड जोर से हिलाना, झकझोरना, अर्थ में हिन्दी में झोरना शब्द का प्रयोग किया जाता है। ज्ञाताधर्म कथा में इसी अर्थ में प्रयुक्त झोड, झोर शब्द का आधार होगा। ज्ञाताधर्मकथा-५ में झोड शब्द का अर्थ पेड़ से पत्र आदि का गिरना दिया गया है। हेट्ठ हेट्ठ विशेषण कम, नीचा, हीन अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। इस हेठ का उपजीव्य सूत्रकृताङ्ग-६ में प्राप्त हेट्ट है। यह शब्द ज्ञाताधर्मकथा में भी पाया जाता है। हिन्दी के प्रख्यात् समालोचक आदरणीय प्रो० नामवर सिंह का यह कथन अत्यन्त प्रासङ्गिक है- 'श्रमण संस्कृति की सांस्कृतिक विरासत की विविधता और बहुलता पर ही हमें ध्यान देना चाहिए। इसी से पूरी भारतीय संस्कृति के व्यापक स्वरूप व इतिहास को समझा जा सकेगा। तभी हम प्राकृत वाङ्मय की विविधता और बहुलता को सुरक्षित रख सकेंगे।' इसी प्रसङ्ग में संस्कृत के मूर्धन्य विद्वान् प्रो० कमलेश दत्त त्रिपाठी का भी कथन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है- 'अगर भारतीयों को इसकी सांस्कृतिक विविधता को समझना है तो हमें संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश का निरन्तर अनुशीलन करना पड़ेगा। प्राकृत साहित्य, प्राकृत वाङ्मय, प्राकृत परम्परा और वह परम्परा जो उतरती है अपभ्रंशों से, आधुनिक भाषाओं का द्रविड़ भारतीय भाषाओं से क्या सम्बन्ध है इसको समझना होगा। सन्दर्भ सूची १. तए णं समणे भगवं महावीरे अद्धामागहाए भासाए भासइ, औपपातिकसूत्र डॉ० के० आर० चन्द्र, भारतीय भाषाओं के विकास और साहित्य की समृद्धि में श्रमणों का महत्त्वपूर्ण योगदान, प्राकृत जैन विद्या विकास फण्ड, अहमदाबाद १९७९, पृ० ६-७ सिद्ध-साध्यमान-भेद-संस्कृत-योनेरेव, तस्य लक्षणं न देशस्य इति

Loading...

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122