Book Title: Sramana 2011 07
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 67
________________ ५६ : श्रमण, वर्ष ६२, अंक ३ / जुलाई-सितम्बर - २०११ प्रति सम्मान भी व्यक्त करते हैं२२।" अङ्ग साहित्य में भाई-भाई के साथ-साथ भाई-बहन के मध्य भी मधुर सम्बन्धों के उद्धरण मिलते हैं। प्रायः भाई छोटी या बड़ी सभी बहनों के दायित्वों का निर्वहन पूरी निष्ठा से करते थे। वे बहनों के लिए पिता की भाँति होते थे। पिता की प्रव्रज्या के पश्चात् आजीवन बहन की जिम्मेदारियों को निभाते थे। प्रायः छोटे भाई बड़ी बहन को माँ के सदृश ही आदर देते थे। ज्ञाताधर्मकथा के अनुसार- "मल्ली का छोटा भाई अपनी बड़ी बहन (मल्ली) के चित्र को देखकर लज्जित होकर उसके समक्ष श्रद्धा से वशीभूत हो नतमस्तक होता है२३।" कुछ उद्धरणों के अनुसार- प्रवज्या के समय भाई को बहन के विवाह व परिवार के जिम्मेदारियों का स्मरण कराकर उसे रोकने का प्रयत्न किया जाता था। मधुर सम्बन्धों के बावजूद भी भाई, बहन के घर एक दिन भी नहीं ठहरता था२४ और न ही भोजन करता था, फिर भी वह बहनों के प्रति सभी दायित्वों का निर्वहन पूरे मन व प्रेम से करता था। अङ्ग साहित्य में कुछ ऐसे भी प्रसंग मिलते हैं, जिनमें भाइयों द्वारा पितृभगिनियों के दायित्वों के निर्वहन का उल्लेख मिलता है। यहाँ पितृभगिनियों से तात्पर्य पिता की बहनों से है। प्रायः पिता की प्रव्रज्या के पश्चात् भाई ही इन भगिनियों के खान-पान, रहन-सहन सम्बन्धी दायित्वों का निर्वहन आजीवन करते थे२५। इनके लिए अपने खुद के भाइयों के सदृश होते थे। उपर्युक्त प्रसङ्ग से यह प्रतीत होता है कि परिवार में शान्ति व खुशहाली का माहौल होता था। छोटे-बड़े सभी एक-दूसरे का सम्मान एवं देख-भाल करते थे। दास-दासी जैन अङ्ग साहित्य के अनुसार उपयुक्त पारिवारिक सदस्यों के साथ-साथ दासदासी भी सम्मानित रूप से घर में रहते थे। जो घर के प्रत्येक छोटे-बड़े कार्यों को सम्पादित करते थे। राजा द्वारा इन्हें 'देवानुप्रिय'२६ की संज्ञा से संज्ञापित किया जाता था। इन्हें परिवार के सदस्यों द्वारा अपार स्नेह व प्रेम मिलता था। विशेष उत्सवों जैसे- विवाह, संस्कार, वर्षगाँठ आदि के अवसर पर सुन्दर वस्त्राभूषणों से सम्मानित भी किया जाता था। ये घर के आन्तरिक कार्यों को देखती तथा अपने स्वामी की कन्याओं का बचपन से युवावस्था तक ख्याल रखती थीं। विवाह आदि अवसरों पर मण्डप तक उनके साथ-साथ चलती थीं। दासियों को परिवार का आन्तरिक कार्य ही सौंपा जाता था। दास, स्वामी के साथ वन-गमन करते, शिकार पर जाते, रथ चलाने आदि कार्यों को देखते थे।

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