Book Title: Sramana 2011 07
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 69
________________ ५८ : श्रमण, वर्ष ६२, अंक ३ / जुलाई-सितम्बर ६. ७. ८. १०. ११. १२. वही, १/७/४, पृ० १९८ अन्तकृद्दशा, सं० मधुकर मुनि, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, राजस्थान, वर्ग ६, विवेचन आचारांगसूत्र, सं० मधुकर मुनि, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, राजस्थान, २/१५ / ७४०, पृ० ३७० विपाकसूत्र, पूर्वोक्त, २/ १३, पृ० ३३ १४. १५. स्थानांगसूत्र, सं० मधुकर मुनि, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, १३. १६. २०११ उपासकदशांग, ब्यावर, पूर्वोक्त, ३/१३३, पृ० १०८ विपाकसूत्र, ब्यावर, पूर्वोक्त, १९८१, ९/२४, पृ० १०६ उपासकदशांग, पूर्वोक्त, ३/१३३, पृ० १०८ ज्ञाताधर्मकथा, पूर्वोक्त, १/२/४७, पृ० १२८ वही, १/१/१६, पृ० १३-१६ १७. १८. १९. २०. २१. २२. २३. २४. २५. २६. २७. २८. २९. राजस्थान, १०/१३७/ पृ० ७३२ जगदीशचन्द जैन, जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पूर्वोक्त, पृ० २३५ ज्ञाताधर्मकथा, पूर्वोक्त, १/८/३१, पृ० २२४ वही, १/१४/५, पृ० ३५९ वही, १/१४/५, पृ० ३५९ अन्तकृद्दशा, पूर्वोक्त, ३/ १६, पृ० ५९ ज्ञाताधर्मकथा, पूर्वोक्त, १/१६/४२, पृ० ४०७ वही, १ / ३ / २०, पृ० २०५ वही, १/१८/३७, पृ० ५०७ वही, १/८/१००, पृ० २५ अन्तकृद्दशा, पूर्वोक्त, वर्ग ६, ज्ञाताधर्मकथा, पूर्वोक्त, १/७/६, पृ० १९९ विवेचन १०३ वही, १/१/१४६, पृ० ६९ वही, १/१६/१६३, पृ० ४४७ आचारांगसूत्र, पूर्वोक्त, २/१/३९१, पृ० ९२ ***

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