Book Title: Sramana 2011 07
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 32
________________ ११. अङ्ग आगम में प्रयुक्त देश्य शब्द : २१ ज्ञापनार्थम् । ८/१/१ (प्राकृत व्याकरणम्, आचार्य हेमचन्द्र, व्याख्या ज्ञानमुनि, आचार्य श्री आत्माराम जैन माडल स्कूल, देहली- १९७४, प्रथम खण्ड, अध्याय ८, पाद १, सूत्र १ की स्वोपज्ञवृत्ति । पाइअ सद्दमहण्णवो, प्राकृत टेक्स्ट सोसाइटी, वाराणसी, पृ० २२२ वी० एस० आप्टे, संस्कृत हिन्दी कोश, पृ० २४६ वही, पृ० २३५ आगमसुत्ताणि (स्थानाङ्गसूत्र) सटीक, भाग ३, पृ० ३११ डेपकूपे प्रतिबिम्बं मरुकूप सदृशमती वोण्डं कूपं दृष्ट्वेत्यर्थः- ४/३ व्यवहारभाष्य-टीका, वकील केशवलाल प्रेमचन्द, अहमदाबाद १९२६, पृ० ९ 'भासुर बोंदी'- आचाराङ्गचूला, अङ्गसुत्ताणि भाग १, सम्पा० आचार्य महाप्रज्ञ, जैन विश्वभारती, लाडनूँ, १९७४, १५/९ सूत्रकृताङ्ग, अङ्गसुत्ताणि, भाग १, श्रुतस्कन्ध २, अध्याय २, सूत्र ६९, ७३ व्याख्याप्रज्ञप्ति, वही, भाग २, शतक उद्देशक २, सूत्र ४ १२. बोंदि विसेणं विस परिणयं - स्थानाङ्गसूत्र, अङ्गसूत्ताणि भाग १, स्थान ४, उद्देशक ४, सूत्र ५१४ एवं णव सोत परिस्सवा बोंदि पण्णत्ता, स्थानाङ्गसूत्र, स्थान १ सूत्र २४, वही, सूत्र ७३ १३. जीतकल्प विषमपद व्याख्या, पृ० ३४, द्रष्टव्य- देशी शब्द कोश, जैन विश्वभारती लाडनूँ, पृ० ३७१ अङ्गविज्जा, प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी, वाराणसी १९५७, पृ० १६८ भगवतीसूत्र, २३/२,४ होले ति वा गोले ति वा- आचारांगचूला, ५/१२/५ १७. पाइअसद्दमहण्णवो, प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी, वाराणसी, पृ ३०२ वही, पृ० ३२० अभिधम्मपिटक, १०८८, महावंश, १७५ २०. आचारांगसूत्र. ४/२९ चंगेडा, अपभ्रंश हिन्दी कोश, डॉ० नरेश कुमार, इण्डो-विजन प्राइवेट लिमिटेड, गाजियाबाद, १९८७, भाग १, पृ० ३३३ २२. प्राकृतव्याकरण, ८/१/१०।। २३. दोणि-चंगेरि-खील- प्रश्नव्याकरणसूत्र १/८ २४. चाउल वा पलम्बंवा, आचारांगसूत्र, १/६,७ २५. पउम चरिउ, २६/१२/६ १६. १८.

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