Book Title: Sramana 2011 07
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 59
________________ ४८ : श्रमण, वर्ष ६२, अंक ३ / जुलाई-सितम्बर - २०११ अनेकान्तवाद प्रवेश, पृ० २६ वही, पृ० २६-२७ भावेष्वेकान्तनित्यषु नान्वयव्यतिरेकवत् । संवेदनं भवेद् धर्ममेदाभावादिह स्फुटम् ॥ १॥ इत्यादि । - वही, पृ० ३० वही, पृ० ३० वही, पृ० ३० एवं शास्त्रवार्त्तासमुच्चय, पूर्वोक्त, ७/६३ १९. २० २१. २२. २३. २४. २५. २६. २७. नान्वयः सहभेदित्वान्न भेदोऽन्वयवृत्तितः । मृद्भेदद्वयसंसर्गवृत्तिजात्यन्तरं घटः ॥ २१ ॥ इत्यादि । - अनेकान्तवादप्रवेश, पूर्वोक्त, पृ० ३१ वही, पृ० ३१ वही, पृ० ३२ द्रव्यपर्याययोः सिद्धो भेदाभेदः प्रमाणतः । संवेदनं यतः सर्वमन्वयव्यतिरेकवत्।। स्वसंवेदनसिद्धे च विरोधोद्भावनं नृणाम् । व्यसनं धीजडत्वं वा प्रकाशयति केवलम् ॥ - वही, पृ० ३४ ***

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