Book Title: Sramana 2011 07
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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अनेकान्तवादप्रवेश प्रतिपादित नित्यत्वानित्यत्ववाद : ४७ सन्मतितर्क, आचार्य सिद्धसेन, गा० ३/८-१४, ज्ञानोदय ट्रस्ट, अहमदाबाद, १९६३, पृ० ६३-६६ वही, गा० १५ अभयदेवसूरिटीका। यथा- न च गुणानां पर्यायत्वे वाचकमुख्यसूत्रम्- गुणपर्यायवद् द्रव्यम् (तत्त्वार्थसूत्र ५/३७) इति विरुद्धयते, युगपद्-अयुगपद्भाविपर्यायविशेष-प्रतिपादनार्थत्वात्तस्य, - द्रष्टव्य अनेकान्तवाद एक समीक्षात्मक अध्ययन, डॉ० राजेन्द्र लाल डोसी, गंगानाथ झा संस्कृत विद्यापीठ, प्रयाग, १९८२, पृ० ८६ अनेकमेकं च तदेव तत्त्वं भेदान्वयज्ञानमिदं हि सत्यम् मृषोपचारोऽन्यतरस्य लोपे तच्छेषलोपोऽपि ततोनुपाख्यम् - स्वयम्भूस्तोत्र, आचार्य समन्तभद्र, श्लोक २२, श्री गणेशवर्णी दि० जैन शोध संस्थान, वाराणसी, १९९३, पृ० ५२, आप्तमीमांसा, श्लोक ७३, श्री गणेशवर्णी दि० जैन शोध संस्थान, वाराणसी, १९७५, पृ० २४८, आप्तमीमांसा, आचार्य समन्तभद्र, पूर्वोक्त, पृ० २४८ स्वयम्भूस्तोत्र, श्लोक २४, पूर्वोक्त, पृ० ५५, आप्तमीमांसा, श्लोक ३७, पूर्वोक्त, पृ० १९६ घटमौलीसुवर्णार्थी नाशोत्पादस्थितिष्वयम् । शोकप्रमोदमाध्यस्थं जनो याति सहेतुकम् || - शास्त्रवार्तासमुच्चय, आचार्य हरिभद्र, ७/२, दिव्यदर्शन ट्रस्ट, मुम्बई, वीर०सं० २५१०, विक्रम सं० २०४० पयोव्रतो न दध्यत्ति, न पयोऽति दधिव्रतः। अगोरसवतो नोभे तस्मात्तत्त्वं त्रयात्मकम् ॥ - शास्त्रवार्ता समुच्चय, पूर्वोक्त, ७/३ अन्वयो व्यतिरेकश्च द्रव्यपर्यायसंज्ञितौ। अन्योन्यव्याप्तितो भेदाभेदवृत्त्यैव वस्तु तौ।। – पूर्वोक्त, ७/३१ अनेकान्तवादप्रवेश, आचार्य हरिभद्र, द्वितीय पूर्वपक्ष, भोगीलाल लहेरचन्द शाह, पाटन, गुजरात १९१९ ई०, पृ० ४ वही, पृ० ५ शास्त्रवार्तासमुच्चय, पूर्वोक्त, ७/४० अनेकान्तवादप्रवेश, पूर्वोक्त, पृ० २२ वही, पृ० २३ वही, पृ० २३ वही, पृ० २५
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