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५२ : श्रमण, वर्ष ६२, अंक ३ / जुलाई-सितम्बर - २०११ में वर्णित राम व श्रवण कुमार से की जाय तो अतिशयोक्ति न होगी। इस प्रकार उपर्युक्त प्रसंगों से माता-पिता व उनके बच्चों के मध्य मधुर सम्बन्धों का बोध होता है। पति-पत्नी प्राचीन काल से ही हिन्दू परिवारों में पति-पत्नी को साथ-साथ आँकलित किया जाता रहा है। ये दोनों संयुक्त रूप से गृहस्थ-सम्बन्धी दायित्वों का निर्वहन करते व एक दूसरे के सुख-दुःख में भागीदार बनते थे। जैन अङ्ग साहित्य में पति-पत्नी के मध्य मधुर सम्बन्धों का बोध होता है। पति के लिए गृहस्वामी व पत्नी के लिए गृहस्वामिनी शब्द का प्रयोग किया जाता था। जहाँ पति घर के बाह्य कार्यों को देखता, वहीं पत्नी घर के आन्तरिक कार्यों को देखती थी। परिवार के प्रति दोनों का व्यवहार उदार और सहानुभूतिपूर्ण होता था। प्रायः पत्नियाँ अपनी मर्यादा व विनम्रता का पालन करते हुए सभी कार्यों को पतियों के मनोनुकूल करती थीं। पति भी पत्नी की इच्छाओं का पूरा ध्यान रखता था तथा उसके जरा सा चिन्तित होने पर कारणों का स्पष्टीकरण करके उसका निवारण करता था। पत्नी भी पति के लिए कान्त, प्रिय, मनोज्ञ, विश्वासपात्र तथा रत्नजड़ित आभूषणों के समान होती थी जिसे पति सर्दी-गर्मी, मच्छर, सर्प, चोर तथा रोगान्तक खतरों से सुरक्षित रखने का प्रयत्न करता था। पति एवं पत्नी दोनों को एक दूसरे की इच्छाओं का सम्मान करना एवं किसी कार्य में एक मत होना ही उस समय दाम्पत्य जीवन के सर्वोच्च आदर्श थे। साथ ही अङ्ग साहित्य में कुछ ऐसे भी प्रसङ्ग मिलते हैं जिससे पति-पत्नी के एक दूसरे के प्रति सच्चरित्रता एवं गुणवान होने की पुष्टि होती है। इस प्रकार पत्नियों को भी परिवार में सभी सदस्यों का अपार स्नेह प्राप्त होता था। इसके अतिरिक्त पत्नियाँ परिवार में अन्य सदस्यों के साथ शब्द, स्पर्श, रूप, गन्ध और रस- इन पाँच प्रकार के भोगों का सेवन करती थीं। उच्च कुलों की पत्नियाँ अपने पतियों के साथ गन्धहस्ती पर सवार होकर विचरण करती थीं। परिवार में सास-श्वसुर द्वारा पत्नियाँ वधू की संज्ञा से उपदिष्ट की जाती थीं। वधू के रूप में इन्हें ससुराल में पुत्री सदृश स्थान प्राप्त था। प्रायः पति के प्रव्रज्या के समय सास-श्वसुर ही उनके प्रति दायित्वों का निर्वहन करते व आजीवन उसकी देखभाल करते थे। वधुयें भी उनका पूरा ख्याल रखती थीं। अङ्ग साहित्य में कुलवधुओं के कार्यों का विभाजन उनके ज्येष्ठत्व के आधार पर किये जाने का संकेत मिलता है। यहाँ ज्येष्ठत्व का आधार उनकी आयु को न मानकर कार्यों के