Book Title: Sramana 2011 07
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 40
________________ आगमों में प्रतिपादित षड्जीव अहिंसा विषयक अवधारणा : २९ है, यह उसकी अबोधि के लिए होता है १५ । पुनः भगवान् महावीर ने कहा है— यह समझता हुआ साधक संयम में स्थिर हो जाए। भगवान् से या त्यागी अनागारों के समीप सुनकर उसे इस बात का ज्ञान हो जाता है - यह हिंसा ग्रन्थि है, यह मोह है, यह मृत्यु है, यह नरक है १६ । पुनः भगवान् महावीर ने कहा है— यह जानकर मेधावी स्वयं वनस्पति- हिंसा का अनुमोदन न करें न दूसरों से समारंभ करवाएँ और न समारंभ करवाने वालों का अनुमोदन करें। फिर भी मनुष्य इसमें आसक्त हुआ, नानाप्रकार के शस्त्रों से वनस्पतिकाय का समारंभ करता है और वनस्पतिकाय का समारंभ करता हुआ अन्य प्रकार के जीवों की भी हिंसा करता है। जैनधर्म में इस तरह की हिंसा का पूर्ण त्याग बतलाया गया है। जैन आचार्यों की पर्यावरण के प्रति विशेष रूप से वनस्पति जगत् के प्रति कितनी सजगता रही है, इसका पता इस तथ्य से चलता है कि उन्होंने प्रत्येक तीर्थङ्कर के साथ चैत्य - वृक्ष को जोड़ दिया और इस प्रकार वे चैत्य - वृक्ष भी जैनों के लिए प्रतीक रूप पूज्य बन गये। समवायांगसूत्र के अनुसार तीर्थङ्करों के सूची इस प्रकार है ९८. चैत्य- - वृक्ष की १. ऋषभदेव - न्यग्रोध (वट ) २. अजितनाथ - सप्तपर्ण ३. सम्भवनाथ- शाल ४. अभिनन्दननाथ- प्रियाल ५. सुमतिनाथ - प्रियंगु ६. पद्मप्रभ - छत्राह ७. सुपार्श्व - शिरीष ८. चन्द्रप्रभ- नागवृक्ष ९. पुष्पदन्त - साली १०. शीतलनाथ - पिलंखुवृक्ष ११. श्रेयांसनाथ - तिन्दुक १२. वासुपूज्यनाथ- पाटल १३. विमलनाथ - जम्बू १४. अनन्तनाथ - अश्वत्थ (पीपल) १५. धर्मनाथ- दधिपर्ण १६. शान्तिनाथ - नन्दीवृक्ष १७. कुन्थुनाथ - तिलक

Loading...

Page Navigation
1 ... 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122