Book Title: Sramana 2011 07
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 25
________________ १४ : श्रमण, वर्ष ६२, अंक ३ / जुलाई-सितम्बर - २०११ जाता है। श्रमण परम्परा का आधुनिक भारतीय भाषाओं के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान है। गुजराती, राजस्थानी, हिन्दी आदि आधुनिक भारतीय भाषाओं का प्रारम्भिक साहित्य प्राय: जैन श्रमणों द्वारा रचित है। श्रमणों का कार्यक्षेत्र आर्यभाषाओं तक ही सीमित नहीं रहा अपितु द्राविड़ भाषाओं को भी उनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। तमिल और कन्नड़ भाषाओं के प्राचीन साहित्य-सर्जन में भी श्रमणों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। जैन श्रमण साहित्य की एक प्रमुख विशेषता इसमें लोकभाषा के स्वाभाविक मूल तत्त्वों की उपलब्धता है। भारतीय आर्यभाषाओं में विद्यमान लोकभाषा के प्राचीनकाल से लेकर आज तक के क्रमिक विकास को ज्ञात करने के लिए अर्धमागधी आगम एवं पालि त्रिपिटक के रूप में उपलब्ध श्रमण साहित्य ही मुख्य साधन है। देश्य शब्दों के रूप में प्राकृत साहित्य में ये तत्त्व प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। प्राकृत की शब्द-सम्पत्ति तत्सम (संस्कृत शब्द) और तद्भव (संस्कृत से निष्पन्न) और देश्य - इन तीन वर्गों में विभक्त की गई है। देश्य शब्द व्याकरण के नियमों से निष्पन्न न होकर जन-सामान्य की बोलचाल में प्रचलित रूढ़ शब्द हैं। जैन आगमों- ग्यारह अङ्ग, बारह उपाङ्ग, चार मूल सूत्र, छ: छेदसूत्र, दो चूलिका में उपलब्ध देश्य शब्द आज भी यथावत् (उसी रूप में) या कुछ परिवर्तन के साथ हिन्दी भाषा में प्रयुक्त हो रहे हैं। इस लेख का उद्देश्य अङ्ग साहित्य में उपलब्ध इन इन शब्दों का प्रारम्भिक साहित्यिक स्रोत सुनिश्चित करना है। इस दृष्टि से पालि-त्रिपिटक और वेद-संहिता, ब्राह्मण ग्रन्थ, आरण्यक और उपनिषदों में भी उन (आगमोपलब्ध देश्य शब्दों की) उपलब्धता का भी अध्ययन किया गया है। यद्यपि देश्य शब्दों के संस्कृत साहित्य में पाए जाने की सम्भावना अत्यन्त क्षीण है। पालित्रिपिटक साहित्य में आगमोपलब्ध इन देश्य शब्दों की प्राप्ति से ऐसे शब्दों के साहित्य में सर्वप्रथम प्रयोग पर प्रकाश पड़ सकता है। ऐसे शब्दों से सम्बद्ध सभी रूपों को सङ्कलित किया गया है। आगमोपलब्ध देश्य शब्दों की अधिक संख्या को देखते हुए इस लेख में मात्र अङ्ग साहित्य के कुछ ग्रन्थों को आधार बनाया गया है। अङ्ग आगमों में प्राप्त देश्य शब्दों का सङ्कलन करते समय कुछ ऐसे शब्द उपलब्ध हुए जो उसी रूप में या कुछ परिवर्तन के साथ अंग्रजी में भी प्रयोग किए जाते हैं। इन शब्दों का भी विवरण यहाँ दिया जा रहा हैकफ (Cough) - कफ शब्द प्राकृत और संस्कृत साहित्य में भी समान रूप में प्रयुक्त हुआ है। संस्कृत में इसकी व्युत्पत्ति ‘केन जलेन फलति' अर्थात् जो

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