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अङ्ग आगम में प्रयुक्त देश्य शब्द : १७ टाल आचारांगसूत्र२९ में टाल शब्द का प्रयोग है। गुठली उत्पन्न होने के पहले की अवस्था वाले फल को टाल कहा गया है। सम्भवतः ऐसे फलों के ढेर के लिए भी टाल शब्द प्रयुक्त होने लगा हो और धीरे-धीरे टाल ढेर और समूह का वाचक हो गया हो। मट्टिय आचारांगचूला में 'मट्टिय' शब्द हिन्दी मिट्टी के अर्थ में प्रयोग किया गया है। प्राकृत वाङ्मय में मट्टिया और मट्टी शब्द भी मिट्टी के अर्थ में प्रयोग हुआ है। पाइअसद्दमहण्णवो में इन दोनों को ही संस्कृत शब्द मृत्तिका का प्राकृत बताया गया है।३१ अपभ्रंश में भी लगभग यही स्थिति है। यहाँ भी मट्टिया और मट्टी शब्द का प्रयोग मिलता है।३२ राजस्थानी भाषा में आज भी मट्टिया और मट्टी शब्दों का प्रयोग होता है। गुजराती में माटी शब्द प्रचलन में है। हिन्दी में भी मट्टी, मिट्टी, माटी सभी शब्द प्रचलन में हैं।३३ माल देश्य शब्द माल आचारांग में घर के ऊपरी भाग, मंजिल के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है।३४ समवायांगसूत्र में भी माल शब्द मञ्जिल के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। देशीनाममाला६ में माल शब्द आराम, बगीचा के अर्थ में प्रयोग में आया है। वहाँ इसके अर्थ मञ्च और आसन विशेष भी बतलाए गए हैं। पालि त्रिपिटक महावंश में 'मञ्जिल' अर्थ में 'मालको' शब्द प्रयुक्त हुआ है। गुजराती में मालो शब्द माल (मञ्जिल) अर्थ में आज भी प्रचलित है।३९ मोल्ल देश्य शब्द मोल्ल का हिन्दी रूप ‘मोल' आज भी प्रचलित है। आचारांगसूत्र में मोल्ल शब्द सर्वप्रथम उपलब्ध होता है।४० प्राकृत वाङ्मय में इसके मुल्ल और मुल्लिअ रूप भी प्राप्त होते हैं। १ अपभ्रंश भाषा में भी मोल्ल, मुल्ल और मोलु शब्द मूल्य अर्थ में प्रयुक्त हुए हैं। राजस्थानी और महाराष्ट्री में भी मोल शब्द का प्रयोग होता है।४२ कवल्ल ग्रास अर्थ में हिन्दी में कवल शब्द का प्राकृत रूप कवल्ल सर्वप्रथम द्वितीय अंगग्रन्थ सूत्रकृताङ्गसूत्र में प्राप्त होता है। अपभ्रंश साहित्य में इसके कवल और कवलु रूप प्राप्त होते हैं। इससे ज्ञात होता है कि भाषा विज्ञान के प्रयत्नलाघव सिद्धान्त के अनुसार संयुक्त ल्ल के स्थान पर ल का प्रयोग होने लगा था। परन्तु