Book Title: Sramana 2010 07
Author(s): Ashok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ श्रमण, वर्ष ६१, अंक ३ जुलाई-सितम्बर २०१० जैन-विद्या के शोध-अध्ययन तथा शोध __ केन्द्र : एक समीक्षा प्रो० सागरमल जैन [इस आलेख के माध्यम से विद्वान् लेखक जैन-शोध की विविध संस्थाओं, शोधार्थियों और शोध-निर्देशकों का कच्चाचिट्ठा प्रस्तुत करते हुए, अपने भावों की पीड़ा को समाज के सम्मुख शोध के क्षेत्र में आई गिरावट के प्रति चिन्तित है। परन्तु ऐसा नहीं है कि आज अच्छे शोध-कार्य नहीं हो रहे हैं, उन्हें और अधिक बल प्रदान करने की आवश्यकता है। शोधार्थी इस आलेख के माध्यम से जैनशोध-स्थलों का परिचय प्राप्त कर सकता है। आज यदि जैन विद्वानों को अच्छा वेतन दिया जाए तो विद्वान् अवश्य तैयार होंगे, यह अर्थप्रधान समय का प्रभाव है। (१) जैनेतरों का शोध-कार्य जैन-विद्या के क्षेत्र में आधुनिक शोध का कार्य उन्नीसवीं शती के अन्त से एवं बीसवीं शती के प्रारम्भ से विशेष रूप से विदेशी अजैन विद्वानों के द्वारा प्रारम्भ हुआ। इनमें मैक्समूलर, आलबेस वीबर, बुलर, रिचर्ड पिशेल, हरमन जैकोबी, ग्लेसनेप, शूबिंग, लायमान हार्टले, लुडविग आल्सडोर्फ, वून वार्थ, स्टीवेन्सन, जेम्स वंड, डॉ. शेर्लोट क्राउजे, पाल डुंडास, ई. फिशर आदि को प्रमुख माना जा सकता है। इन लोगों के शोध-कार्य में मुख्य कठिनाई यह रही है कि ये लोग न तो सम्पूर्ण भारतीय वाङ्मय और जैन वाङ्मय से परिचित थे और न ही संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश तथा पालि आदि भाषाओं से पूर्व परिचित थे, जो कुछ इन्हें उपलब्ध हो सका और जिसका वे अध्ययन कर सके, अपने उसी सीमित ज्ञान के आधार पर अपनी प्रतिभा के द्वारा उन्होंने निष्कर्ष निकाल लिये, जैसे 'जैन-धर्म, बौद्ध-धर्म की एक शाखा है', आदि, दूसरे जो लोग ईसाई धर्म से प्रभावित थे, वे भी अपने निष्कर्षों में प्रामाणिक नहीं रह सके, जैसे- जैन धर्म पर "Heart of Jainism" जैसा विस्तृत ग्रन्थ लिखकर भी स्टीवेन्सन ने लिख दिया कि "Jainism is without heart" अर्थात् जैन धर्म हृदयहीन है। पाल डुंडास ने अपनी पुस्तक में एवं अपने चित्रों के माध्यम से जैन धर्म के आलोचनात्मक पक्ष को ही अधिक मुखर

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130