Book Title: Sramana 2010 07
Author(s): Ashok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 43
________________ ४२ : श्रमण, वर्ष ६१, अंक ३ / जुलाई-सितम्बर-१० और जैन परम्परा के अपेक्षाकृत कम संख्या में प्राप्त पुरातात्त्विक अवशेष सारनाथ के सामाजिक धार्मिक-समरसता की ओर संकेत करते हैं। वर्तमान में भी सारनाथ में बौद्ध धर्म के मन्दिरों के साथ ही शिव को समर्पित सारंगदेव का मन्दिर और धम्मेख स्तूप के पास स्थित दिगम्बर एवं सिंहपुरी स्थित श्वेताम्बर जैन मन्दिरों (दोनों ही श्रेयांसनाथ को समर्पित) तथा कुषाण, गुप्त एवं गहड़वाल काल तक के कलावशेष इस स्थान के धार्मिक-सांस्कृतिक एवं कलात्मक गतिविधियों के महत्त्व को रेखाकिंत करते हैं। जैन धर्म में २४ तीर्थंकरों को सर्वोच्च देवों (देवाधिदेव) के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त है। वस्तुतः तीर्थंकर, जैन धर्म की त्याग एवं साधना की मूलभावना के शाश्वत प्रतीक हैं, जो जैन धर्म का मूलाधार रहा है। अयोध्या के बाद काशी को ही जैन परम्परा में सर्वाधिक महत्त्व प्राप्त है, क्योंकि २४ तीर्थंकरों में से चार तीर्थंकरों के विभिन्न कल्याणक (च्यवन, जन्म, दीक्षा और कैवल्य) वाराणसी में ही सम्पन्न हुए। ऐतिहासिकता की दृष्टि से भी पार्श्वनाथ का काशी से सम्बन्ध रहा है। इस रूप में भी महत्त्वपूर्ण है कि सातवें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ और २३वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ का जन्म वाराणसी नगर में क्रमशः वर्तमान भदैनी एंव भेलूपुर नामक स्थानों पर हुआ था जबकि आठवें तीर्थंकर चन्द्रप्रभ का जन्म वाराणसी नगर से २३ कि.मी. दूरी पर स्थित चन्द्रपुरी नामक स्थान पर हुआ था।६ १४वीं शताब्दी के आचार्य जिनप्रभसूरि के अनुसार वाराणसी नगर से चन्द्रपुरी की दूरी ढ़ाई योजन थी, जो उपरोक्त दूरी से समानता रखती है, साथ ही जिनप्रभसूरि ने चन्द्रप्रभ के चार कल्याणकों के भी यहीं सम्पन्न होने का उल्लेख किया है। ११वें तीर्थंकर श्रेयासंनाथ के जन्मस्थल के रूप में सिंहपुरी तीर्थ का उल्लेख मिलता है, जिसकी पहचान वर्तमान सारनाथ से की गयी है। श्रेयांसनाथ की जन्मस्थली होने के कारण ही सारनाथ का जैन परम्परा में आज भी विशेष महत्त्व है। वाराणसी से सम्बन्धित चार तीर्थंकरों यथा- सुपार्श्वनाथ, चन्द्रप्रभ, श्रेयांसनाथ एवं पार्श्वनाथ के कल्याणक सम्पन्न होने के सन्दर्भ यतिवृषभ कृत 'तिलोयपण्णत्ति' ग्रन्थ में उल्लिखित हैं। तिलोयपण्णत्ति के अनुसार श्रेयांसनाथ का जन्म फाल्गुन शुक्ल एकादशी को श्रवण नक्षत्र में सिंहपुर में हुआ था। इनके माता-पिता क्रमशः वेणु देवी और विष्णु नरेन्द्र थे। सीहपुरे सेयंसो विण्हुणरिदेण वेणुदेवीए । एक्कारसिए फग्गुणसिदपक्खे समणभे जादो ।।'

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