Book Title: Sramana 2010 07
Author(s): Ashok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 51
________________ ५० : श्रमण, वर्ष ६१, अंक ३ / जुलाई-सितम्बर-१० रुद्र और नारायण में पहले युद्ध होता है और फिर सन्धि हो जाती है। सन्धि के समय रुद्र से नारायण ने कहा अद्यप्रभृति श्रीवत्सः शूलाङ्को मे भवत्वयं । . मम पाण्यङ्कितश्चापि श्रीकण्ठस्त्वं भविष्यसि ।। १३ अर्थात् आपके शूल से अंकित मेरे वक्ष का यह चिह्न आज से श्रीवत्स होगा और मेरे हाथ से आपके कण्ठ में जो चिह्न अंकित हो गया है उससे - आप श्रीकण्ठ कहलायेंगे। श्रीवत्स की आकृति एवं इसके विभिन्न अंकन को देखने से स्पष्ट हो जाता है कि इस प्रतीक का उद्भव एक मानव-मूर्ति के रूप में हुआ था, क्योंकि अपने समान गुणों के कारण मनुष्य ही लक्ष्मी-पुत्र होने के लिए सक्षम था। मानवाकृति वाले श्रीवत्स के सर्वोत्तम उदाहरण सिन्धु-सभ्यता की मृण्मूर्तियों४ तथा गंगा-घाटी से मिले एन्थ्रॉपोमार्फिक ताम्र-उपकरणों में५ द्रष्टव्य हैं। समय के साथ-साथ इस प्रतीक के स्वरूप में परिवर्तन होता गया। स्थानक मानव मूर्ति से प्रारम्भ होकर मौर्य-शुंग युग में यह पालथी मारकर बैठे मानव के आकार का हो गया। भरहुत, साँची, मथुरा, भाजा, सारनाथ आदि स्थलों से श्रीवत्स का ऐसा ही अंकन मिला है। कालान्तर में यह फण उठाए हुए दो नागों का मिथुन बना और अन्ततः चतुर्दल पुष्प के रूप में परिवर्तित हो गया। श्रीवत्स का नाग-मुद्रा रूप हमें प्राय: कुणिन्द, कुलूत और यौधेयसिक्कों१६ पर और अहिच्छत्रा, भुइला (बस्ती, उ.प्र.) तथा तुमैन से प्राप्त मृदभाण्डों पर दिखाई पड़ता है। श्रीवत्स का चतुर्दल रूप प्रायः मध्ययुगीन देव-प्रतिमाओं के वक्षों पर पाया जाता है। यह रूप जैन प्रतिमाओं तथा कतिपय अभिलेखों में भी पाया जाता है। श्रीवत्स की आकृति मानव-मूर्ति से उद्भूत हुई, इसकी पुष्टि उत्तरी तथा दक्षिणी भारत से मिले कई उत्कीर्ण फलकों से होती है। साँची, सारनाथ, कौशाम्बी तथा मथुरा के उत्कीर्ण शिल्प में श्रीवत्स के मानवाकार रूप का उल्लेख करना नितान्त समीचीन प्रतीत होता है। सांची१८ तथा सारनाथ के वेदिका-स्तम्भों पर, कौशाम्बी से१९ मिले एक तोरण खण्ड पर और मथुरा के माट नामक स्थान से मिली चष्टन की मूर्ति की कमरपेटी के एक पदक पर२° हाथों और पैरों को गोलाई से मोड़कर जिन मानव-आकृतियों को उत्कीर्ण किया गया है वे शुंगयुगीन शिल्प के श्रीवत्स प्रतीक के आकार में हैं। दक्षिण 'भारत के पेडुमुडियम नामक स्थान से मिले एक शिला-फलक पर गणेश, ब्रह्मा, नृसिंह, विष्णु, लक्ष्मी, शिवलिंग, महिषासुरमर्दिनी दुर्गा के साथ ही

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