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११८ : श्रमण, वर्ष ६१, अंक ३ / जुलाई-सितम्बर-१० अनन्तव्रत, अनन्त-चतुर्दशी, तीर्थङ्कर शान्तिनाथ एवं सुपार्श्वनाथ का गर्भ कल्याणक, तीर्थङ्कर पुष्पदन्त और वासुपूज्य का निर्वाण (मोक्ष) कल्याणका
दिगम्बरों में इस पर्व को भाद्रपद (५-१४ तिथियों) में मनाने के पीछे एक घटना का उल्लेख आता है- अवसर्पिणी (जिस काल में धर्म का और सुखादि का क्रमशः ह्रास होता है) के पञ्चम आरा या काल (दुःखमा) की समाप्ति तथा छठे काल (दुःखमा-दुःखमा) के प्रारम्भ होने पर हिंसा प्रधान अनार्यवृत्ति का आविर्भाव हो जाता है। छठे काल के समाप्त होने पर और उत्सर्पिणी (जिस काल में धर्म और सुखादि का क्रमशः विकास होता है) के प्रथम काल (दुःखमा-दुःखमा) का प्रारम्भ होने पर श्रावण कृष्ण प्रतिपदा से सात सप्ताह (७x७=४९ दिन) तक सात प्रकार की वर्षा होती है पश्चात् धर्माराधना का सुयोग आता है। इसी समय सौधर्म इन्द्र विजयार्ध की गुफा से स्त्री. पु. के ७२ जोड़ों को बाहर निकालता है जिन्हें उसने प्रलय के समय वहाँ छिपाया था। जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति में यह घटना उत्सर्पिणी के प्रथम आरा की समाप्ति तथा द्वितीय आरा के प्रारम्भ होने पर बतलाई है और तदनुसार श्वेताम्बर रस मेघ वाले सातवें सप्ताह में (भाद्रपद कृष्णा १२ से पर्दूषण पर्व मानते हैं तथा अन्त में भाद्रपद शुक्ला चतुर्थी या पञ्चमी को संवथ्सरी मनाते हैं। यही दोनों परम्पराओं में अन्तर है। इसे हम वर्तमान समयचक्र से भी समझ सकते हैं। ___आश्विन कृष्णा एकम् को दिगम्बर (संवत्सरी) क्षमावाणी मनाते हैं। परस्पर गले लगकर एक दूसरे से क्षमा-याचना करते हैं तथा सहभोज आदि करते हैं।