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जिज्ञासा और समाधान : ११७
चार प्रमुख पन्थ हुए- १. खरतरगच्छ जिसकी स्थापना वि.सं. १२०४ में आ. जिनवल्लभसूरि के शिष्य आ. जिनदत्तसूरि ने की थी। २. अचलगच्छ जिसकी स्थापना वि.सं. १२१३ में श्री आ. आर्यरक्षित या विजयचन्द्र सूरि ने की थी। ३. स्थानकवासी (लुकामत या लोकागच्छ) जिसकी स्थापना वि.सं. १५०८ में हुई थी; ये संवत्सरी भादों सुदी पंचमी को मनाते हैं। ४. तेरापन्थ जिसकी स्थापना वि.सं. १८१८ में श्री आ. भीखम जी ने की थी तथा आचार्य तुलसी और महाप्रज्ञ जिसके अनुयायी थे। ये सभी कल्पसूत्र की वाचना करते हैं।
दिगम्बर परम्परा इस पर्व को 'दशलक्षण' पर्व के नाम से मनाते हैं जिसमें उत्तम क्षमा आदि दश धर्मों की आराधना की जाती है अथवा तद्प आचरण किया जाता है। यहाँ उत्तम शब्द सम्यक्त्व का बोधक है। वे दश धर्म निम्न हैं
१. उत्तम क्षमा (क्रोध पर संयम), २. उत्तम मार्दव (मृदुता या मान कषाय पर संयम, ३. उत्तम आर्जव (ऋजुता, सरलता या माया कषाय पर संयम), ४. उत्तम शौच (शुचिता या लोभ कषाय पर संयम), ५. उत्तम सत्य (सत्यनिष्ठता या हित-मित-प्रिय वचन व्यवहार), ६. उत्तम संयम (शरीर, इन्द्रिय और मन पर नियन्त्रण), ७. उत्तम तप (उपवास आदि बाह्य तप तथा प्रायश्चित्त आदि आभ्यन्तर तप करना), ८. उत्तम त्याग (बाह्य धनादि परिग्रह तथा अहंकार आदि आभ्यन्तर परिग्रह का विसर्जन), ९. उत्तम आकिञ्चन (शरीरादि से पूर्ण निर्लिप्त होना) और १० उत्तम ब्रह्मचर्य (कामेच्छा से रहित होकर आत्म-ध्यान में लीन होना)। वस्तुत: ये दश धर्म नहीं हैं अपितु एक ही धर्म के दश लक्षण हैं जिसका तात्पर्य है कि कोई भी धर्म का पालन करोगे तो शेष का भी पालन करना पड़ेगा क्योंकि ये सभी आत्मा के स्वभाव हैं और एक दूसरे में गतार्थ हैं। यह पर्व दिगम्बरों में १० दिन का होता है और क्रमश: एक-एक दिन एक-एक धर्म (उत्तम क्षमा आदि) का विशेष पालन किया जाता है। देव-पूजन, शास्त्र-स्वाध्याय आदि धार्मिक आयोजन होते हैं। यह पर्व यद्यपि आष्टाह्निकों की तरह वर्ष में तीन बार (चैत्र, भाद्रपद और माघ मास में शुक्ल पक्ष की पञ्चमी से चतुर्दशी तक) आता है परन्तु भाद्रपद में ही इसके मनाने का व्यवहार है। श्वेताम्बरों में तीन बार का कोई उल्लेख नहीं है। दिगम्बरों में यह पर्व श्वेताम्बरों की सम्पूर्ति होने के बाद मनाया जाता है। दिगम्बरों के दशलक्षण पर्व के मध्य में अन्य व्रत भी आते हैं, जैसेषोडशकारण, लब्धिविधान, रोटतीज, पुष्पाञ्जलि, शील-सप्तमी, सुगन्धदशमी,