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११६ : श्रमण, वर्ष ६१, अंक ३ / जुलाई-सितम्बर-१०
चित्त की उर्वरा (उपजाऊ) भूमि में खूब लहलहाता (फलीभूत होता) है। पर्दूषण पर्व की आराधना से निर्मल हुए चित्त में समापन पर 'क्षमा' या 'मिच्छा मे दुक्कडं' (मेरा अपराध मिथ्या हो) सार्थक है। इस दिन सामूहिक प्रतिक्रिमणपाठ पढ़ा जाता है और परस्पर क्षमाभाव के बाद साधार्मिक वात्सल्य भोज की स्वस्थ परम्परा है। प्रतिदिन करणीय प्रतिक्रमण की अपेक्षा इस वार्षिक (सांवत्सरिक) प्रतिक्रमण का बड़ा महत्त्व है।
श्वेताम्बर इसे 'अष्टाह्निक पर्व भी कहते हैं। जीवाभिगम सूत्र में कहा है कि वर्ष में चार अष्टाह्निक पर्व आते हैं जो चैत्र सुदी, आषाढ़ सुदी, भाद्रपद सुदी और आश्विन सुदी सप्तमी से चतुर्दशी या अष्टमी से पन्द्रस तक। जो वर्ष में छः अष्टाह्निक पर्व मानते हैं वे इनमें कार्तिक सुदी और फाल्गुन सुदी को जोड़ देते हैं। ऐसी मान्यता है कि इन दिनों में देवगण नन्दीश्वर द्वीप जाते हैं और वहाँ अठाई महोत्सव मनाते हैं। दिगम्बर परम्परा में यह अलग पर्व है और वर्ष में तीन बार आता है- आषाढ़ सुदी (८-१५), कार्तिक सुदी (८-१५) तथा फाल्गुन सुदी (८-१५
कर्म आठ हैं, सिद्धों के गुण ८ हैं, प्रवचनमातायें ८ हैं, अत: पर्दूषण पर्व भी आठ दिनों का होता है। इन आठ दिनों में कर्मों की निर्जरा, सिद्धों के गुणों की साधना और प्रवचन-माताओं की आराधना की जाती है। 'अन्तगडसूत्र' का अथवा 'कल्पसूत्र' का पाठ किया जाता है। 'कल्प' का अर्थ है। 'साधु की आचारविधि'। भद्रबाहु प्रणीत कल्पसूत्र में चौबीस तीर्थङ्करों का जीवन चरित्र है तथा महावीर की उत्तरवर्ती स्थविरावलि भी है। इसकी गणना छेदसूत्रों में की जाती है। यह स्वतंत्र ग्रन्थ नहीं अपितु दशाश्रुतस्कन्ध का आठवाँ अध्ययन है। अन्तगड सूत्र में भगवान् नेमिनाथ और महावीर युग के ९० आत्म-साधकों का रोचक वर्णन है। यह आठवां अंग ग्रन्थ है। इसके आठ वर्ग भी हैं। चमत्कार
और आडम्बरों से ध्यान हटाने के लिए इसके पाठ का प्रचलन हुआ है। विशेषकर प्रथम तीन दिन अष्टाह्निका व्याख्यान होता है और चौथे दिन से कल्पसूत्र की नौ वाचनाएँ होती हैं। पांचवें दिन तीर्थङ्कर माता त्रिशला के चौदह स्वप्न बतलाते हैं। छठे दिन महावीर की जीवनचर्या को बतलाकर उनका जन्म दिन भी मनाया जाता है। सातवें दिन तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ, नेमिनाथ और आदिनाथ का क्रमशः वर्णन किया जाता है। आठवें दिन सांवत्सरिक प्रतिक्रमण पढ़ा जाता है। आठों दिन धार्मिक आयोजन होते हैं। संवत्सरी के दिन कल्पसूत्र का मूलपाठ (श्री वारसासूत्र) पढ़ा जाता है। कालान्तर में श्वेताम्बरों में निम्न