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| जिज्ञासा और समाधान
(१) जिज्ञासा- आत्मा में वैभाविकी शक्ति (अशुद्धरूप परिणति) मानी जाती है तो वह मुक्तावस्था में भी रहेगी और कोई भी जीव शुद्ध-बुद्ध-मुक्त नहीं हो सकेगा। 'मुक्तावस्था में उसका सर्वथा अभाव माना जाता है' यह कथन कैसे सम्भव है? क्योंकि किसी भी शक्ति (गुण) का कभी भी सर्वथा अभाव नहीं हो सकता। अतः स्पष्ट करें कि यह आत्मा की वैभाविकी शक्ति क्या
-श्री रामगोपाल जैन, यू.एस.ए. समाधान- प्रत्येक द्रव्य सत्-स्वभावी तथा परिणमनशील है। आत्मा में दो प्रकार का परिणमन करने की शक्ति है- (१) स्वाभाविक परिणमन (स्वाभाविकी क्रिया) और (२) वैभाविक परिणमन (वैभाविकी क्रिया)। ये दोनों प्रकार के परिणमन या क्रियायें सत् की पारिणामिक शक्ति हैं; ये न तो दो स्वतन्त्र शक्तियाँ हैं और न एक शक्ति का द्विधा-भाव। वस्तुत: शक्ति तो एक स्वाभाविकी ही है जो निमित्त विशेष के कारण विभाव रूप परिणत होने की योग्यता रखती है।
स्वभाव-परिणमन विशेष-निमित्त-निरपेक्ष होता है और विभाव-परिणमन विशेष-निमित्त-सापेक्ष होता है। निमित्त दो प्रकार के हैं- सामान्य और विशेष। 'काल' सभी द्रव्यों के परिणमन में सामान्य निमित्त है। रागादि रूप भावकर्म और ज्ञानावरण आदि द्रव्य-कर्म आत्मा के विभाव रूप परिणमन में विशेष निमित्त हैं। इन कर्मादि विशेष निमित्तों के कारण आत्मा में विभाव रूप परिणति देखी जाती है। यह वैभाविक परिणमन विशेष-निमित्त-सापेक्ष होकर भी वस्त की उस काल में प्रकट होने वाली योग्यतानुसार ही होता है। संसारावस्था में कर्म-विशेष निमित्त से अमूर्त आत्मा कर्मों से बद्ध होकर मूर्त सा हो जाता है, परन्तु मुक्तावस्था में कर्म-विशेष निमित्तों का अभाव होने से उसमें वैभाविक परिणति नहीं होती है। ___ इसे एक उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है, जैसे सफेद रोशनी यदि नीले रंग के कांच के गिलास पर पड़ती है तो वह नीली हो जाती है और यदि लाल गिलास पर पड़ती है तो वह लाल हो जाती है। रोशनी तो सफेद ही है, निमित्तविशेष (नीला/लाल) मिलने पर वह नीले अथवा लाल रंग की हो जाती है, वस्तुत: वह सफेद ही है। इसी तरह आत्मा की शक्ति तो स्वाभाविकी ही है परन्तु वह निमित्त-विशेष के मिलने पर भिन्न रूप प्रतीत होने लगती ___ * प्रो. (डॉ.) सुदर्शनलाल जैन, निदेशक, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी।