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११२ : श्रमण, वर्ष ६१, अंक ३ / जुलाई-सितम्बर - १०
ट्रस्ट, माण्डवला द्वारा “जिनशासन गौरव" से सम्मानित । ६ जून १९९९ जैन कल्याण संघ, कोलकाता द्वारा समाज रत्न से सम्मानित । १९९८ वीरायतन राजगीर द्वारा सम्मानित ।
सभी क्षेत्रों में विशिष्टता व उच्चता लिये नाहटाजी की सादगी देखकर अनेक विद्वान् व अग्रणी श्रावक आश्चर्यचकित हो उठते थे। 'अहं' नाहटाजी में लेशमात्र भी नहीं था। प्रभुता को नहीं बल्कि लघुता को ही वे श्रेष्ठ मानते थे। हंस की तरह आपने श्रेष्ठता को ही सदैव ग्रहण किया। निडर, अडिग, निश्चल श्री नाहटाजी स्वप्रशंसा व विज्ञापन से सदा दूर रहे।
भावनाशील नाहटाजी अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति चित्रों के, गद्य के, पद्य के व विभिन्न पुरातन व वर्तमान भाषाओं के माध्यम से करते थे। पद्य के माध्यम से भावना अभिव्यक्ति की उनकी कृति क्षणिकाएं काफी चर्चित रहीं। गुरुदेव पर आपने अनेक रचनाएं की।
नये से नये व छोटे से छोटे लेखक की कृति को सराहकर उनकी निरन्तरता बनाये रखने हेतु वे सदा उनको प्रोत्साहित करते रहते थे। ८५ वर्ष की उम्र तक आपने निरन्तर भ्रमण किया। भ्रमण का मुख्य उद्देश्य शोध ही रहा, चाहे वो पुरातत्त्व का हो, शिलालेखों का हो, साहित्य का हो, मूर्तियों का हो, खुदाई में प्राप्त पुरावशेषों का हो, तीर्थों का हो, इतिहास का हो या अन्य किसी विषय का हो।
श्री जैन भवन, श्री जैन श्वेताम्बर पंचायती मंदिर, श्री जैन श्वेताम्बर सेवा समिति, श्री जैन श्वेताम्बर उपाश्रय कमेटी, श्रीमद् देवचन्द्र ग्रन्थमाला, अखिल भारतीय श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ महासंघ, एल. डी. इन्स्टीट्यूट अहमदाबाद, श्री नागरी प्रचारिणी सभा इत्यादि अनेक संस्थाओं से आप जुड़े रहे।
रचनाएँ
सती मृगावती, राजगृही, समय सुन्दर रास पंचक, हम्मीरायण, विविध तीर्थ कल्प, क्षणिकाएं, खरतरगच्छाचार्य प्रतिबोधित गौत्र व जातियाँ इत्यादि ५३ रचनाएँ हैं। इनके अतिरिक्त कुछ रचनायें स्व. अगरचंदजी नाहटा, श्री रमन लाल शाह तथा श्री सत्यरंजन बनर्जी के साथ सह सम्पादकत्व में प्रकाशित हैं। 'ढोला मारु रा दोहा' आदि ६ रचनाएँ अप्रकाशित हैं। सत्तर से अधिक पत्र-पत्रिकाएँ आपसे सम्बन्धित रही हैं।
डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी, डॉ. सुनीतिकुमार चटर्जी, डॉ. वासुदेव शरण