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विशिष्ट व्यक्तित्व : ११३
अग्रवाल, डॉ. मोती चन्द्र, श्री दलसुख मालवणिया, डॉ. ज्योति प्रसाद जैन, मदर टेरेसा, महोपाध्याय विनयसागर, डॉ. सागरमल जैन, डॉ. सत्यरंजन बनर्जी, श्री नेमिचन्द जैन आदि विद्वानों से आपके विशेष सम्पर्क थे।
अन्त में शारीरिक व्याधि बढ़ी लेकिन उन्होंने इस तरफ से अपना ध्यान हटाये रखा। पारिवारिक सदस्यों के टोकने पर वे श्रीमद् राजचन्द्र की ये पंक्तियाँ सुनाते 'आत्मा छु, नित्य डूं, देह थी भिन्न छु' और इस पंक्ति को अन्तिम दिनों में उन्हें कई बार गुनगुनाते हुए पाया गया। अपनी अथाह वेदना को अप्रगट ही रखते। देहावसान के दो दिन पूर्व ही उन्होंने कहा कि देह व आत्मा अलग है। स्विच ऑफ कर देने से दोनों का सम्बन्ध विच्छेद कर देह के कष्टों से अपने आपको उभारा जा सकता है।
अन्त में ११ फरवरी २००२ को सायं ४.१० पर ध्यानाराधनापूर्वक शरीर त्याग किया। अपने पीछे भरा-पूरा परिवार छोड़ गये।