Book Title: Sramana 2010 07
Author(s): Ashok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 128
________________ साहित्य सत्कार : १२७ ने हड़प्पा संस्कृति की खुदाई से प्राप्त नग्न जिन-प्रतिमाओं के आधार पर आज से पाँच हजार वर्ष पूर्व तक दिगम्बर जैन संघ के अस्तित्व को सिद्ध किया है। 'कुन्दकुन्दाचार्य ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी के उत्तरार्ध में उत्पन्न हुए थे' ऐसा भी सिद्ध किया है। प्रस्तुत ग्रन्थ की संक्षिप्त रूपरेखा निम्न प्रकार है प्रथम खण्ड- यह सात अध्यायों और तेईस प्रकरणों में विभक्त है। प्रथम एवं द्वितीय अध्याय में 'दिगम्बर मत को मिथ्यामत और अर्वाचीन कहना कोरी कल्पना है, इसमें कोई तर्क नहीं है। यह सिद्ध किया गया है। तृतीय अध्याय में श्वेताम्बर ग्रन्थों में उपलब्ध दिगम्बर मत के उल्लेखों का खण्डन किया गया है। चतुर्थ अध्याय में जैनेतर वैदिक साहित्य, संस्कृत काव्य साहित्य तथा बौद्ध साहित्य में उपलब्ध दिगम्बर मुनियों की चर्चा है। पञ्चम अध्याय में दिगम्बर-सम्मत पुरातात्त्विक साक्ष्यों को प्रस्तुत किया गया है। षष्ठ अध्याय में दिगम्बर और श्वेताम्बर भेद के इतिहास को स्पष्ट किया गया है। सप्तम अध्याय में यापनीय संघ का इतिहास दर्शाया गया है। द्वितीय खण्ड- यह पाँच अध्यायों (८ से १२) और उन्तीस प्रकरणों में विभक्त है। अष्टम अध्याय में कुन्दकुन्दाचार्य के भट्टारक होने का और नेमिचन्द्र सिद्धान्त-चक्रवर्ती के यापनीय होने का खण्डन किया गया है। नवम अध्याय में कुन्दकुन्दाचार्य के गुरु-नाम तथा उनके स्वयं के नाम के अनुल्लेख के कारणों का विचार किया गया है। दशम अध्याय में कुन्दकुन्दाचार्य के समय सम्बन्धी मतों की समीक्षा की गई है। एकादश अध्याय में दिगम्बर ग्रन्थ षट्खण्डागम सम्बन्धी शङ्काओं का समाधान किया गया है। द्वादश अध्याय में दिगम्बर ग्रन्थ कसायपाहुड सम्बन्धी शंकाओं का निराकरण किया गया है। तृतीय खण्ड- यह तेरह अध्यायों (१३ से २५) और बत्तीस प्रकरणों में विभक्त है। त्रयोदश अध्याय से त्रयोविंश अध्यायों में क्रमश: भगवतीआराधना, विजयोदया टीका के कर्ता अपराजितसूरि, मूलाचार, तत्त्वार्थसूत्र, तिलोयपण्णत्ति, सन्मतिसूत्रकार सिद्धसेन, रविषेणकृत पद्मपुराण, वराङ्गचरित, हरिवंशपुराण, स्वयम्भूकृत पउमचरिउ, बृहत्कथाकोश को; चतुर्विंश अध्याय में छेदपिण्ड, छेदशास्त्र, प्रतिक्रमण-ग्रन्थत्रयी को तथा पञ्चविंश अध्याय में बृहत्प्रभाचन्द्रकृत तत्त्वार्थसूत्र को दिगम्बर ग्रन्थ प्रतिपादित किया गया है। अन्त में शब्द-विशेष सूची तथा संदर्भग्रन्थ सूची है। प्रारम्भ में प्रस्तावना विषयक विस्तृत विषय-विवेचन है। पन्थ-भेद से ऊपर उठकर ग्रन्थ पठनीय एवं संग्रहणीय है। डॉ. (प्रो.) सुदर्शनलाल जैन निदेशक, पार्श्वनाथ विद्यापीठ

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