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७० : श्रमण, वर्ष ६१, अंक ३ / जुलाई-सितम्बर - १०
के लिए एक रूप में था, उस स्थान या मठ पर उनका कोई स्वामित्व नहीं था अन्यथा वे साधु (अनगारी) कैसे कहे जाते ?
सन्दर्भ
१. ऐतरेय ब्राह्मण, ३९.६, एच. एन. (सम्पा.) आनन्दाश्रम, पूना, १९३४ २. महाभारत (अनुशासन पर्व ) ६१.२, भण्डारकर (सम्पा.), ओरियण्टल रिसर्च इंस्टीट्यूट, पूना, १९६६
३. वही, ६१.२
४. मनुस्मृति, ७.११९, हरगोविन्द शास्त्री (अनु.), वाराणसी, १९७० ५. उत्तराध्ययनसूत्र ६.५ हर्मन जैकोबी, सेक्रेड बुक ऑफ द ईस्ट, जैन सूत्राज जिल्द, ६५
६. वही, १५.१३
७. बृहत्कल्पभाष्य, ३.११, जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, जगदीश चन्द्र जैन, वाराणसी, १९६५, पृ. ४०२
८. आदि पुराण, २०.८८ जिनसेन कृत, पन्नालाल जैन (अनु.), भारतीय ज्ञानपीठ
प्रकाशन, १९६३
९. जैन धर्म, कैलाश चन्द्र जैन, मथुरा, १९६६, पृ० ३००
१०. वही, पृ. ३००, पाद टिप्पणी ।
११. प्राचीन भारत का राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास, हरिदत्त वेदालंकार, दिल्ली, १९८४, पृ. ४२
१२. वही, पृ० ९३
१३. हिस्टारिकल लिटरेरी इन्स्क्रिप्शंस, राजबली पाण्डेय, पृ० ४१ ४२
१४. वही, पृ. ५३-५४
१५. वही, पृ. ५१-५२
१६. जैन शिलालेख संग्रह, भाग - २, विजयमूर्ति (सम्पा० ) मणिकचन्द्र दिगम्बर
ग्रन्थमाला, १९५२, पृ० २४८-२४९
१७. एपिग्राफिया इण्डिका, भाग-७, पृ० ३७-३८
१८. जैन शिलालेख संग्रह, भाग-२, पृ० २४९
१९. वही, पृ० ४४५-४४६
२०. वही, भाग-३, विजयमूर्ति (सम्पा०) मणिकचन्द्र दिगम्बर ग्रन्थमाला, १९५२,
पृ० ४२-४५
२९. वही, भाग- २, पृ० ६९
२२. देखिये, हिस्टारिकल लिटरेरी इन्स्क्रिप्शन्स, राजबली पाण्डेय, पृ. ४१
२३. जैन शिलालेख संग्रह, भाग - २, पृ. ६७
२४. वही, पृ० ३३३ २५. वही, पृ० १८२-१८८
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