Book Title: Sramana 2010 07
Author(s): Ashok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 52
________________ भारतीय कला में लक्ष्मी - श्रीवत्स का अन्तस्सम्बन्ध और अंकन : ५१ श्रीवत्स का भी अंकन किया गया है। इस फलक में श्रीवत्स प्रतीक की ऊपरी नोक को मानव मुख बना दिया गया है। राजकीय संग्रहालय चेन्नई में कावेरीपक्कम से प्राप्त एक प्रस्तर फलक सुरक्षित है जिसपर किरीटधारी और मानवमुख श्रीवत्स का गजाभिषेक उत्कीर्ण किया गया है । २१ श्रीवत्स का उद्भव एक मांगलिक चिह्न के रूप में हुआ था। साँची के विशाल स्तूप के उत्तरी तोरण द्वार के एक स्तम्भ के ऊपर चक्रासन पर एक विशाल त्रिरत्न चित्रित है जिसके मध्य में श्रीवत्सर २ का प्रतीक अंकित है। श्रीवत्स की उद्भावना आज से लगभग साढ़े तीन हजार वर्ष ईसा पूर्व में हुई होगी। उस काल के उदाहरण हमें प्राचीन मातृदेवी की मृण्मयी मूर्तियों के साथ पायी जाने वाली 'स्टार शेप्ड' पुरुष मृण्मूर्तियों, गंगाघाटी के एन्थ्रापोमार्फिक ताम्र-उपकरणों तथा बोगजकोई के अभिलेखों में मिलते हैं। श्रीवत्स की यह मांगलिक परम्परा क्रमशः श्रीचक्रों एवं तारे के आकार की (स्टारशेप्ड) मृण्मूर्तियों के रूप में शुंग-युग तक पायी जाती रही। कुषाण काल से श्रीवत्स की मांगलिक परम्परा में एक अभिनव अभिप्राय और जुड़ गया। यह अभिप्राय था महापुरुष के वक्ष - लक्षण के रूप में अंकन । प्रारम्भ में इसे जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाओं के वक्ष पर उत्कीर्ण किया गया, बुद्ध के चरण-न्यासों पर बिठाया गया और फिर यही विष्णु के वक्ष की शोभा बढ़ाने लगा। कालान्तर में श्रीवत्स वक्ष पर धारण करने का एक सामान्य अलंकरण हो गया और जैन, बौद्ध, वैष्णव, शैव आदि सभी छोटी-बड़ी आकृतियों के वक्षों पर इसका अंकन होने लगा। उत्तरी भारत से प्रारम्भ होकर श्रीवत्स की यह वक्ष - लक्षण परम्परा धीरे-धीरे समस्त देश में लोकप्रिय हो गयी और लगभग डेढ़ हजार वर्षों तक निरन्तर भारतीय मूर्ति - कला में पायी जाती रही। सन्दर्भ १. औपपातिकसूत्र, ३१, रायपसेणियसुत्त, कण्डिका ६६ २. ललितविस्तर, ७ - पृष्ठ ७५, पंक्ति २६ - पृष्ठ, १९५, पंक्ति १६-१७ ३. सेलेक्ट इन्स्क्रिप्शन्स, वाल्यूम १ बुक २, सं. ९९, दिनेश सरकार, फलक- ३८ ४. इण्डियन आर्कियोलॉजी : ए रिव्यू, १९७१-७२, पृष्ठ ५३ ५. द जैन स्तूप ऐण्ड अदर एण्टीक्विटीज ऐट मथुरा, वी. ए. स्मिथ, फलक ८ एवं एस. के. सरस्वती, ए सर्वे ऑफ इण्डियन स्कल्पचर, फलक १३ ६. फ्राम हिस्ट्री टू प्रीहिस्ट्री, गोवर्द्धन राय शर्मा, पृष्ठ १० का चित्र ७. इण्डियन आर्कियोलॉजी : ए रिव्यू, १९५५-५६, पृष्ठ संख्या २४, फलक ३९ सी

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