Book Title: Sramana 2010 07
Author(s): Ashok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 45
________________ ४४ : श्रमण, वर्ष ६१, अंक ३ / जुलाई-सितम्बर - १० चिह्न इस काल-चक्र को सुरक्षा प्रदान करते हुए उनको सहारा भी दे रहा हो। प्रो० तिवारी ने शैली के आधार पर इस पट्ट का निर्माण काल लगभग गुप्तकाल का उत्तरार्ध माना है, जबकि डॉ० प्रमोद चन्द्रा इसे कुषाणकाल का मानते हैं। परन्तु शैलीगत विशिष्टता और चुनार के बलुए प्रस्तर का प्रयोग प्रो० तिवारी की मान्यता को अधिक बल देता है। मथुरा से प्राप्त कई कुषाणकालीन आयागपट्टों पर भी चारों ओर चार त्रिरत्नों का अंकन द्रष्टव्य है परन्तु इनमें मध्य में चक्र के स्थान पर तीर्थंकर आकृतियों का उत्कीर्णन हुआ है। २. विमलनाथ - चुनार के बलुए प्रस्तर में निर्मित इस प्रतिमा में विमलनाथ (१३वें तीर्थंकर) कायोत्सर्ग में चामरधारी सेवकों से वेष्टित रूपायित हैं। वर्तमान में इस मूर्ति का मस्तक खण्डित है। विमलनाथ के चरणों के पास पीठिका पर परम्परानुरूप तीर्थंकर का लांछन वराह उत्कीर्ण है । मूलनायक के वक्ष पर श्रीवत्स चिह्न है। यह मूर्ति दिगम्बर परम्परा की है। इस मूर्ति का निर्माणकाल लगभग नवीं शती ई० है । ३. तीर्थंकर मूर्ति का शीर्ष भाग- तीर्थंकर की इस खण्डित प्रतिमा का शीर्ष भी चुनार बलुए प्रस्तर में निर्मित है। वर्तमान में इस मूर्ति में मस्तक सहित प्रभामण्डल के दाईं ओर का भाग ही सुरक्षित है। इस सौम्य मुख मूर्ति में मूलनायक के मस्तक का भाग घुंघराले केश विन्यास वाला है। लम्ब कर्ण, नासाग्र दृष्टि और पुष्पालंकृत प्रभामण्डल के आधार पर यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि यह तीर्थंकर मूर्ति अपनी पूर्णता में अत्यन्त ही मनोहारी मूर्ति रही होगी। प्रो० तिवारी ने ही सर्वप्रथम शीर्ष भाग के त्रिछत्र के आधार पर इसे तीर्थंकर मूर्ति के रूप में पहचाना था। इस मूर्ति में प्रभामण्डल वाले भाग के बायें ओर एक मालाधारी नभचारी गन्धर्व आकृति को बादलों की पृष्ठभूमि में मनोहारी रूप में दर्शाया गया है। मालाधारी विद्याधर की मुखाकृति पर मन्दस्मित् का सुन्दर भाव है जो तीर्थंकर के प्रति आदरभाव का सूचक है। गन्धर्वाकृति के नीचे एक तीर्थंकर आकृति को ध्यान - मुद्रा में दर्शाया गया है। सम्भवतः यह मूर्ति पूर्णता में पंचतीर्थी प्रकार की रही होगी। ४. पार्श्वनाथ मूर्ति का शीर्ष भाग- प्रस्तुत खण्डित मूर्ति भी चुनार के बलुए प्रस्तर में निर्मित है। २३वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की पहचान सिर के ऊपर सुन्दर सप्त सर्प फणों से सुशोभित छत्र से स्पष्ट है। इस

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