Book Title: Sramana 2010 07
Author(s): Ashok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 44
________________ सारनाथ संग्रहालय में संगृहीत जैन मूर्तियाँ : ४३ श्रेयांसनाथ के जन्म एंव स्थान के सन्दर्भ में उत्तर-पुराण तथा त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में श्रेयांसनाथ का नाम 'श्रेयांस' रखने के कारण का भी उल्लेख हुआ है, जिसके अनुसार गर्भ में आने के बाद से ही सभी राजपरिवार और सम्पूर्ण राष्ट्र का श्रेय अर्थात् कल्याण हुआ। जिनस्य मातापितरावुत्सवेन महीयसा । अमिधां श्रेयसि दिने, श्रेयांस इति चक्रतुः।।११ वर्तमान में पुरातत्त्व संग्रहालय, सारनाथ में प्रो० मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी जी के प्रयास से प्रदर्शित जैन मूर्तियों के अतिरिक्त सारनाथ स्थित दिगम्बर जैन मन्दिर एवं सारनाथ से दक्षिण दिशा में लगभग दो कि.मी. दूरी पर स्थित सिंहपुरी के श्वेताम्बर जैन मन्दिर (दोनों श्रेयांसनाथ को समर्पित) में जैन मूर्तियाँ उपलब्ध हैं। संग्रहालय की जैन मूर्तियाँ गुप्त काल से १०वीं शती ई. के मध्य की हैं, जबकि उपर्युक्त मन्दिरों की मूर्तियाँ १८वीं से २०वीं शती ई० के मध्य की निर्मित हैं। दोनों मन्दिरों में सुरक्षित मूर्तियों में से कई उदाहरण दूसरे स्थलों पर बनने के बाद इन मन्दिरों में उपासकों द्वारा स्थापित किये गये (जिवराज पापड़ीवाल द्वारा संगमरमर में निर्मित मूर्तियाँ), जो सारनाथ की जैन परम्परा को और भी पुष्ट करती हैं। प्रो. तिवारी के साथ संयुक्त सर्वेक्षण से उद्घाटित एवं सारनाथ में उत्खनन से प्राप्त कुल पाँच जैन मूर्तियाँ प्रकाश में आयी हैं। वर्तमान में इन जैन मूर्तियों को सारनाथ स्थित संग्रहालय में दर्शकों के अवलोकनार्थ प्रदर्शित किया गया है, जिनका विस्तृत विवेचन इस प्रकार है:१. श्रीवत्स-त्रिरत्न शिलापट्ट- यह शिलापट्ट सम्भवत: पूजा के निमित्त निर्मित किया गया था। इस पट्ट की सबसे बड़ी विशिष्टता है। जैन धर्म के सर्वमान्य मंगलचिह्न श्रीवत्स, त्रिरत्न, चक्र (धर्मचक्र) और ध्वजस्तम्भ का अंकन दायें से बायें अंकन में सर्वप्रथम ध्वज-स्तंभ का उकेरन है, जो तीन स्तरों वाली पीठिका पर स्थित है। यह ध्वजस्तम्भ मानस्तम्भ का भी सूचक हो सकता है, क्योंकि जिस रूप में सामने विशाल श्रीवत्स बना है और उसके निचले सिरे में पदमकलिकाओं का अंकन हुआ है वह श्रीवत्स चिह्न पूजन के सन्दर्भ से और अन्य महत्त्व से जुड़ता है। मध्य भाग में श्रीवत्स चिह्न का अत्यन्त सुरुचिपूर्ण एवं कलात्मक अंकन हुआ है। सबसे अन्त में चारों दिशाओं का प्रतिनिधित्व करते चार त्रिरत्नों का अंकन चक्र के चारों ओर हुआ है। यह अंकन इस प्रकार हुआ है कि मानो सभी दिशाओं से त्रिरत्न

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