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सारनाथ संग्रहालय में संगृहीत जैन मूर्तियाँ : ४१
वाराणसी से ऋषभनाथ, अजितनाथ, सुपार्श्वनाथ, चन्द्रप्रभ, विमलनाथ, शान्तिनाथ, मुनिसुव्रतनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, महावीर आदि तीर्थंकरों की मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं। वाराणसी के जैन मन्दिरों में सुपार्श्वनाथ, श्रेयांसनाथ
और पार्श्वनाथ की सर्वाधिक मूर्तियाँ हैं। सम्भवत: इन तीर्थंकरों की मूर्तियों का अन्य तीर्थंकरों की मूर्तियों की तुलना में अधिक संख्या में प्राप्त होना इस बात का प्रमाण है कि वाराणसी उपरोक्त तीर्थंकरों की कल्याणक-भूमि रही है। सारनाथ स्थित श्रेयांसनाथ के अतिरिक्त वाराणसी के अन्य सभी जैन मन्दिर सुपार्श्वनाथ एवं पार्श्वनाथ को समर्पित हैं।
मूर्तियों के निर्माण में पूरे क्षेत्र को उसकी समग्रता में देखना अधिक समीचीन है। इस दृष्टि से न केवल श्रेयांसनाथ की जन्म-स्थली सारनाथ से जैन मूर्तियों के प्रमाण मिले हैं बल्कि सुपार्श्वनाथ एवं पार्श्वनाथ की जन्मस्थली एवं वाराणसी के विभिन्न क्षेत्रों से भी तीर्थंकर मूर्तियों के पर्याप्त उदारण मिले हैं जो लगभग छठी शती ई० से २०वीं शती ई० के मध्य की हैं। इनमें महावीर, यक्ष-यक्षी युक्त नेमिनाथ, गज-लांछन युक्त अजितनाथ, प्रतिमासर्वतोभद्रिका एवं पंचतीर्थी आकृतियाँ मुख्य हैं। वाराणसी -सारनाथ स्थित अनेक जैन मन्दिरों (दिगम्बर एवं श्वेताम्बर दोनों ही परम्परा के) में संगृहीत मूर्तियों के क्षेत्र के रूप में देखा जा सकता है। वर्तमान में सारनाथ-वाराणसी में स्थित जैन मन्दिर १८वीं से २०वीं शती ई० के मध्य के हैं।
प्रस्तुत शोध-लेख में सारनाथ संग्रहालय में संग्रहीत जैन मूर्तियों के माध्यम से 'सारनाथ का जैन परम्परा एवं कला में महत्त्व' उजागर करना हमारा अभीष्ट है।
सारनाथ वस्तुतः काशी अथवा वाराणसी का ही एक भाग रहा है। पुरातात्त्विक प्रमाण के रूप में काशीराज के दीवान जगत सिंह को अचानक ही सारनाथ से एक बौद्ध मंजूषा प्राप्त हुई, जिसने लोगों का ध्यान आकर्षित किया, परिणामस्वरूप सारनाथ में उत्खनन कार्य प्रारम्भ हुआ। इस उत्खनन में विपुल मात्रा में बौद्ध और साथ ही वैदिक-पौराणिक तथा जैन धर्म से सम्बन्धित कला अवशेषों के उदाहरण मिले, जिससे इस स्थान का भारतीय कला और संस्कृति की दृष्टि से महत्त्व बढ़ गया। सारनाथ के उत्खनन से प्राप्त अवशेषों का लिखित संकलन डा० दयाराम साहनी ने अपने ग्रन्थ में विस्तार से किया है। यह सत्य है कि संख्या की दृष्टि से सर्वाधिक बौद्ध अवशेष सारनाथ उत्खनन से ही प्राप्त हुए हैं परन्तु वैदिक-पौराणिक परम्परा