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श्रमण, वर्ष ६१, अंक ३ जुलाई-सितम्बर २०१०
सारनाथ संग्रहालय में संगृहीत जैन मूर्तियाँ (जैन परम्परा और कला के विशेष सन्दर्भ में)
डा० शान्ति स्वरूप सिन्हा
[ प्रस्तुत लेख सारनाथ संग्रहालय में संगृहीत जैन तीर्थकर की मूर्तियों से सम्बन्धित है। इसके द्वारा विद्वान् लेखक ने सारनाथ को जो मुख्यतः बुद्ध की उपदेशस्थली तथा मौर्य एवं गुप्तकालीन बौद्धमूर्तियों की दृष्टि से प्रसिद्ध है, जैन मूर्तिकलावशेषों की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण बतलाया है।]
जैन परम्परा में कला की दृष्टि से बुद्ध की प्रथम उपदेश-स्थली सारनाथ और वाराणसी नगर दोनों का महत्त्व रहा है। वाराणसी का उल्लेख विभिन्न जैन ग्रन्थों यथा- प्रज्ञापना, ज्ञाताधर्मकथा, उत्तराध्ययन चूर्णि, कल्पसूत्र, उपासकदशांग, आवश्यकनियुक्ति, निरयावलिका, अन्तकृत्दशा', तिलोयपण्णत्ति (यतिवृषभ कृत), उत्तर-पुराण (गुणभद्र कृत), पार्श्वनाथ-चरित्र (वादिराजसूरि कृत) एवं आराधना कथा कोश (नेमिदत्त कृत) आदि में हुआ है। इनके अतिरिक्त 'विविधतीर्थकल्प' में भी वाराणसी का विस्तार से वर्णन हुआ है, जिसमें वाराणसी का परिचय देते हुए इसे चार भागों में बाँटा गया है, यथादेव-वाराणसी, राजधानी-वाराणसी, मदन-वाराणसी, विजय-वाराणसी तथा विश्वनाथप्रासाद का वाराणसी की राजधानी के रूप में उल्लेख हुआ है। ऐतिहासिकता की दृष्टि से पार्श्वनाथ का वाराणसी से सम्बन्ध सिद्ध हो चुका है। ___ पुरातत्त्व की दृष्टि से जैन कला परम्परा में वाराणसी का महत्त्व गुप्तकाल से ही है जिसके प्रमाण हमें राजघाट एवं वाराणसी के विभिन्न स्थलों से प्राप्त होते हैं। वर्तमान में जैन धर्म से सम्बन्धित पुरातात्त्विक सामग्री भारत कला भवन (वाराणसी), पुरातत्त्व संग्रहालय, सारनाथ और राज्य संग्रहालय, लखनऊ में सुरक्षित है। जैन धर्म से सम्बन्धित मूर्तियों का निर्माण वाराणसी में गुप्त काल से २०वीं शती ई० तक होता रहा है जिसके प्रमाण राजघाट, सारनाथ, भेलूपुर वाराणसी के अनेक स्थलों के उत्खनन से प्राप्त हुए हैं। * असिस्टेन्ट प्रोफेसर, कला इतिहास विभाग, दृश्य कला संकाय, काशी हिन्दू
विश्वविद्यालय, वाराणसी-२२१००५