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३२ : श्रमण, वर्ष ६१, अंक ३ / जुलाई-सितम्बर-१०
आचार्य प्रियग्रन्थ राजस्थान के प्रसिद्ध आचार्यों में से एक थे। सम्भवत: ये माध्यमिका अर्थात् वर्तमान चित्तौड़ के रहने वाले थे। कल्पसूत्र की थेरावली में इन्हें माध्यमिका शाखा का प्रवर्तक माना गया है।२६ इससे स्पष्ट है कि ये इसी क्षेत्र के आस-पास के ही रहने वाले थे। इसी ग्रन्थ से ज्ञात होता है ये आचार्य सस्थित सुप्रतिबद्ध के शिष्य थे। जैन ग्रन्थों में आचार्य सस्थित का जन्म वीर निर्वाण २४३ अर्थात् विक्रम पूर्व २२७ बताया गया है। इससे स्पष्ट है कि आचार्य प्रियग्रन्थ का समय भी इसी के आस-पास होगा।
जैन परम्परा में आचार्य प्रियग्रन्थ को मंत्रविद्या का विशेष ज्ञाता माना जाता है एक बार हिंसा प्रधान यज्ञ को उन्होंने मंत्रविद्या के बल पर रुकवाया और वहाँ उपस्थित लोगों को प्रतिबोध देकर अध्यात्म के अनुकूल बनाया
था।२७
__ आचार्य वज्रसेन अपने युग के एक प्रभावशाली आचार्य थे। प्रभावकचरित के अनुसार उनका जन्म महावीर निर्वाण ४९२ अर्थात् लगभग ३५ ई.पू. में हुआ था।२८ उनका जन्म कहाँ हुआ था, यह ज्ञात नहीं है परन्तु उन्होंने सुपरिक (आधुनिक सोपारा) क्षेत्र को अपनी कर्मभूमि बनाई। वे एक दीर्घजीवी आचार्य थे। वे ९ वर्ष की अवस्था में ही संन्यासी बन गये थे और १२० वर्ष तक श्रमण परम्परा का पालन कर १२८वें वर्ष में मृत्यु को प्राप्त हुए। उनका मुख्य कार्य क्षेत्र सोपारा था।२९ वहाँ उन्होंने श्रेष्ठी जिनदत्त के चार पुत्रों नागेन्द्र, चन्द्र, विद्याधर, निवृत्ति को जैन दीक्षा प्रदान की थी। कालान्तर में चारों पुत्रों के नाम पर चार कुल अर्थात् चार गण स्थापित हए। अर्थात् नागेन्द्र कुल, चन्द्र कुल, विद्याधर कुल और निवृत्ति कुल। इसकी प्रत्येक शाखा में अनेक प्रभावक आचार्य हुए।
आचार्य पादलिप्त तीसरी शताब्दी ई. के प्रख्यात जैनाचार्य थे। प्रभावक चरित के अनुसार उनका जन्म उत्तर प्रदेश के अयोध्या नगर में हुआ था। यद्यपि इनका जन्म उत्तर प्रदेश में हुआ था किन्तु इनका कार्यक्षेत्र पश्चिम भारत था। वे सातवाहन नरेश हाल के राजदरबार के एक विभूति थे। ये जैन धर्म दर्शन के प्रख्यात पण्डित थे। ये काव्य प्रतिभा के भी धनी थे।
आचार्य पादलिप्त का साहित्यिक अवदान अत्यन्त प्रशंसनीय है। वे अपने युग के विश्रुत विद्वान् थे। उनके द्वारा रचित 'तरंगवती' प्राकृत भाषा की एक प्रसिद्ध रचना है।३१ अनेक जैन विद्वानों ने इस कथा का अपने ग्रन्थों में उल्लेख किया है। नौवीं शताब्दी के आचार्य शीलांक ने 'चउपन्नमहापुरिसचरिय' ग्रन्थ