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पश्चिम भारत के जैनाचार्यों का साहित्यिक अवदान : ३१
पर विशेष प्रकाश डाला गया है। इनका सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ पंचकल्प महाभाष्य पंचकल्पनियुक्ति के व्याख्यान के रूप में है। इसमें उन्होंने विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला है कि किस प्रकार के व्यक्तियों को प्रवज्या देनी चाहिए और किस प्रकार के व्यक्ति प्रवज्या के अयोग्य हैं। इसमें भारत के उन क्षेत्रों की चर्चा है। जिनमें साधु-साध्वियों को भ्रमण करने की सलाह दी गई है और उन्हें आर्य क्षेत्र का बताया गया है। ___ पश्चिम भारत के अन्य प्रतिष्ठित आचार्यों में आचार्य कालक का नाम अत्यन्त श्रद्धा से लिया जाता है और उनकी गणना जैन धर्म के प्रभावक आचार्यों में होती है। यहाँ अवलोकनीय है कि जैन परम्परा में एक से अधिक कालक नामधारी आचार्य हुए हैं, अपने विवेच्य काल में जो कालक नामधारी आचार्य हैं वे कालक द्वितीय हैं।२१ अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'सुवर्णभूमि में कालकाचार्य' में उमाकान्त शाह जी ने कालक नामधारी सभी आचार्यों की समीक्षा की है।२२ प्रो. शाह लम्बे तर्क-वितर्कों के बाद इस विचार पर पहुँचते हैं कि कालक ही गर्दभ या गर्दभिल्ल का नाश करने वाले प्रभावक आचार्य थे जिन्होंने प्रथम शताब्दी ई.पू. के आस-पास पश्चिम भारत में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया था।
ऐतिहासिक घटनाओं के सन्दर्भ में यह उल्लेखनीय है कि आचार्य कालक की अत्यन्त सुन्दर बहन सरस्वती का अपहरण उज्जयिनी नरेश गर्दभिल्ल ने कर लिया था। उसी को छुड़ाने के लिए आचार्य कालक ने शकों का सहारा लिया था। इन आचार्य कालक का जन्म धारावर्ष में माना जाता है। ये यहाँ के राजा वज्र सिंह और उनकी पत्नी सुरसुन्दरी के पुत्र थे।२३ इन्हें प्रज्ञापनासूत्र नामक उपांग का रचयिता माना जाता है। इनका व्यक्तित्व विराट था। आवश्यकचूर्णि तथा आवश्यक नियुक्ति से ज्ञात होता है कि एक बार जब आचार्य कालक प्रतिष्ठान गये थे उस समय वहाँ जैनियों का प्रसिद्ध त्योहार पर्युषण चल रहा था। पर्युषण पर्व (संवत्सरी) जैन धर्मावलम्बियों द्वारा भाद्रपद शुक्ल पंचमी को मनाया जाता है। जब आचार्य कालक प्रतिष्ठान गये तो ठीक उसी दिन वहाँ की जनता द्वारा मनाया जाने वाला त्योहार ‘इन्द्रमह' भी पड़ रहा था। सातवाहन राजा की प्रार्थना पर आचार्य कालक ने पञ्चमी के एक दिन पूर्व अर्थात् चतुर्थी को ही पर्युषण पर्व मनाने की आज्ञा प्रदान की जिससे जनता परेशान न हो सके। यहाँ ध्यातव्य है कि ऐसा निर्णय केवल ऐसे प्रभावक आचार्य दे सकते हैं जो युगप्रधान आचार्य एवं श्रुतधर हों।२५