Book Title: Sramana 2010 07
Author(s): Ashok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 35
________________ ३४ : श्रमण, वर्ष ६१, अंक ३ / जुलाई-सितम्बर-१० ४. आचारांग, ५. सूत्रकृतांग, ६. दशाश्रुतस्कन्ध, ७. बृहत्कल्प, ८. व्यवहार, ९. सूर्यप्रज्ञप्ति, १०. ऋषिभाषित। दिगम्बर परम्परा के आचार्य श्वेताम्बर आचार्यों के समान ही पश्चिम भारत के दिगम्बर आचार्यों का योगदान भी प्रशंसनीय रहा है। अपने विवेच्य काल सातवीं शताब्दी तक किसी दिगम्बर आचार्य का नाम अभिलेखों में तो नहीं मिलता परन्तु साहित्यिक स्रोतों से उनकी महत् कृतियों की जानकारी प्राप्त अवश्य होती है। दिगम्बर परम्परा के महान् आचार्यों में गुणधर का नाम सर्वोपरि है।२६ ये इस परम्परा के श्रुतधर आचार्य माने जाते हैं। इनके जन्म-स्थान के विषय में विशेष जानकारी प्राप्त नहीं है किन्तु आचार्य धरसेन के साथ इनका नाम जुड़ा होने के कारण इनका कार्यक्षेत्र पश्चिम भारत का गुजरात प्रान्त रहा होगा, यह विश्वास किया जा सकता है। आचार्य गुणधर का साहित्यिक अवदान अत्यन्त श्लाघनीय है। आचार्य गुणधर और धरसेन की प्रतिष्ठा दिगम्बर परम्परा में श्रुतधर के रूप में है। अत: दोनों ने साहित्य के क्षेत्र में अपना विशिष्ट योगदान दिया। आचार्य गुणधर ने ‘कसायपाहुड' जैसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ की रचना की। इस ग्रन्थ को उन्होंने सूत्र रूप में निबद्ध किया। अत: गुणधर को दिगम्बर परम्परा का प्रथम सूत्रकार भी माना जाता है। कहा जाता है कि आचार्य ने १६ हजार पद्य परिमाण विषय को १८० गाथाओं में संक्षिप्त कर दिया। इस ग्रन्थ को महासमुद्र के समान माना गया है, जिसमें कर्म विज्ञान सम्बन्धी विषय पर चर्चा की गई है। कसायपाहुड ग्रन्थ में १५ अधिकार (विषय) हैं, और ५३ विवरण गाथाओं सहित २३३ गाथायें हैं। इन २३३ गाथा सूत्रों में आचार्य गुणधर ने क्रोध, मान, माया, लोभ इन चार कषायों का वैज्ञानिक रूप से वर्णन किया है। उन्होंने कर्म बन्ध के चारों भेदों प्रकृतिबन्ध, स्थितिबन्ध, अनुभागबन्ध और प्रदेशबन्ध का विस्तार से वर्णन कर कर्म बन्ध की व्यापक व्याख्या की है। क्योंकि ये बन्ध ही मानव के आत्मस्वरूप का बोध कराने में बाधक होते हैं। इस महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ ने आने वाली शताब्दियों में दिगम्बर परम्परा के महान् आचार्यों को अत्यन्त प्रभावित किया। आचार्य वीरसेन एवं जिनसेन ने इसी ग्रन्थ पर 'जयधवला' नामक महान् टीका की रचना की जिसमें ६० हजार श्लोक हैं। यही नहीं आचार्य यतिवृषभ ने इसी ग्रन्थ को आधार बनाकर चूर्णि ग्रन्थ की रचना की जिसमें ६ हजार श्लोक हैं। जयधवला के मंगलाचरण

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